इन्दु प्रकाश द्विवेदी   (इन्दु)
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लखनवी
Joined 23 September 2021


लखनवी
Joined 23 September 2021

आज की पेशकश ~

पालिये ऐसे ख़्वाब क्यों आख़िर।
मांगिये माहताब क्यों आख़िर।

ज़िन्दगी मौज में गुज़ारी जाए,
बेवज़ह पेच ओ ताब क्यों आख़िर।

इक मुहब्बत का नशा कम तो नहीं,
इतनी महंगी शराब क्यों आख़िर।

क्यों नफ़ा और ख़सारा देखे,
दोस्ती में हिसाब क्यों आख़िर।

जिये जाना सजा से कम तो नहीं,
ये हुज़ूम ए अज़ाब क्यों आख़िर।

पी रहे हैं सभी नशे के लिये,
फ़िर ये अदब ओ आदाब क्यों आख़िर।

इतने चुपचाप क्यों बैठे हैं आज,
कुछ तो कहिये जनाब क्यों आख़िर।

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मैं ही भीतर हूं मैं ही बाहर   हूं।
मैं   ही शीशा हूं मैं ही पत्थर हूं।
जिसके चुभने पे रो रहा था मैं,
दर्द भी मैं हूं मैं ही    नश्तर हूं।

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ग़म से राहत नहीं चाहिए।
कोई मोहलत नहीं चाहिए।

वो जो मर के मिले, क्या करें,
ऐसी जन्नत नहीं चाहिए ।

कोई देता हो ख़ैरात में,
ऐसी उल्फ़त नहीं चाहिए।

जुल्म करने के काम आये जो,
ऐसी ताक़त नहीं चाहिए ।

डर के मारे वो सज़दा करें,
ऐसी इज़्ज़त नहीं चाहिए।

ज़िन्दगी बोझ लगने लगे,
ऐसी फ़ुरसत नहीं चाहिए।

लोग पीछे से गाली बकें,
ऐसी शोहरत नहीं चाहिए।

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एक शेर ~

जिस्म के मरने पे क्यों सोग मनाते हो यार,
क़ैद से छूटी हुई रूह की ख़ुशी देखो।

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तुम देखते हो फ़ायदा बस आज अभी का।
नुकसान नज़र आता मुझे अगली सदी का।
तुम खोद के तालाब ही बैठे हो ख़ुशफ़हम,
मैं दुःख मना रहा हूं इक मरती सी नदी का।

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बिटिया दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें!

बेटियां अनमोल शुभ उपहार हैं
बेटियां खुशियों का इक आगार हैं
हैं सभी रिश्तों की पावन सी कड़ी,
बेटियां इस सृष्टि का आधार हैं।

बेटियां पापा की परियां हैं।
भाई की प्यारी सी गुड़िया हैं।
मां की हैं ये लाड़ली सबसे,
अपने घर-आंगन की चिड़ियां हैं।

सिर्फ आंगन में नहीं अब डोलती हैं।
आसमाँ में पंख अपने तोलती हैं।
क़ामयाबी के बजाती हैं ये डंके,
सरहदों पर दुश्मनों को रौंदती हैं

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माना   तू   बेज़ार   बहुत  है।
निष्ठुर  ये   संसार   बहुत  है।
ग़म जीवन के साथ जुड़े पर,
खुशियों का विस्तार बहुत है।

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लोग मिलते  बिछड़ते  हैं  पर।
दिल से जाते  नहीं  कुछ मगर।

याद     उनकी  है   जंजीर सी, 
दिल को जकड़े है वो इस क़दर।

ज़हन कहता है   तू   आगे बढ़,
दिल ये कहता है रुक सब्र कर।

भोर आती है        उम्मीद-सी,
शाम  जाती    है   मायूस  कर।

यूँ ही  कट जानी है    ज़िन्दगी,
फ़ायदा कुछ नहीं   सोचकर।

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तालियां चाहिए न हमें सुर्खियां ।
फ़र्ज़ अपना समझ कर किया जो किया।

जिनकी फ़ितरत है ढूंढेंगे वो ख़ामियां।
पाल मत दिल में उनके लिए तल्ख़ियां ।

जो मुनासिब लगे काम करना वही,
पहले मेहनत करो जम के फिर मस्तियां

तैरना सीख लो पार जाना है ग़र,
काम आएंगी कब तक भला कश्तियां।

हाल बेहाल उनका ज़मीं पर जो हैं,
चांद पर तुम बसाने चले बस्तियां।

आज तुम हो जहां, कल कोई और था,
बेवफ़ा हैं सभी नाम की तख्तियां।

रूठता है कोई तो मना लो उसे,
रह न जाये ख़लिश उम्र भर दरमियां

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आँख को नींद से जुदा करके।
कुछ नहीं मिलता रतजगा करके।

मुश्किलें सारी अपनी हल होंगी,
दिल से देखो तो मशवरा करके।

दुश्मनों से गिला रहेगा नहीं ,
देख लो दोस्त आज़मा करके।

ज़्यादा सच बोलना भी ठीक नहीं,
रख न दे ये तुम्हें तन्हा करके।

सारी दुनिया हसीं लगेगी तुम्हें,
ख़ुद को देखो तो आसमां करके।

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