किसी दूसरे धर्म की संस्कृति का सम्मान करना अच्छा है, उस माहौल में ढलकर उनके साथ रहना भी ठीक है.. लेकिन उस धर्म में इतना भी ना लीन हो जाओ कि अपने वास्तविक धर्म का ही परित्याग कर दो, उस संस्कृति को भूल जाओ जिसके बीच रहकर तुम बड़े हुए हो, अपने धर्म को सदैव सर्वोच्च रखो...!!!
रिश्तों के तौर पर स्त्रियाँ (अधिकतर) माँ बनने के उपरांत ही निःस्वार्थ होती हैं । वरना उसके पहले उसकी नज़रों में किसी भी रिश्ते को लेकर उतनी खास अहमियत नहीं रहती। खास कर प्रेम सम्बन्धी रिश्तों में फ़ायदा-नुकसान के सिवा कुछ नहीं दिखता...!!