हिमांशु पांडेय  
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Joined 26 April 2020


Joined 26 April 2020

उन्हें लगता है कि मुझे धोखे में रखा हैं,
धोखे में रखा हूं उन्हें पता तक नहीं लगता।

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अब उसके जिस्म को नया सहारा चाहिए,
उसे तो बस अब आशिकों का पहाड़ा चाहिए।
यूं ही नहीं लोग खफा होने लगे है उससे,
क्यूंकि हर शख्स अब उसे दुबारा चाहिए।

(पहाड़ा-table)

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कोई भी मुश्किल हो या हो संतान की कोई पीड़ा,
चुटकियों में दूर करने का उठाया है उन्होंने बीड़ा।
सुनो भाई कह गए साधु और कह गए कबीरा,
बाप से बढ़ कर यहां ना कोई हुआ फकीरा।

कन्यादान कर नेत्रों में ही मारा आंसू का कीड़ा,
बाप के यश ऐसे गाओ जैसे गाती भक्त मीरा।
बाप की सेवा कर,लेकर ये मानव शरीरा,
कहे साधु कहे कबीरा बाप जैसा ना कोई फकीरा।

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सोचा ना था हमारी कलम हमें कब ऐसी रफ्तार पकड़ा देगी,
मायुस होने पर भी हर हाल,हर मुश्किल हमसे बयां करवा लेगी।
और लोग उलझे रहे सवालों के जवाब दुंढने किताबों में,
पर हमें क्या खबर हमारी कलम उनके ही सवालों पर एक नई ग़ज़ल सुनवा देगी।

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हवाएं जब अपना रुख तेजी से बदलने लगे,
नीले आसमान में जब काले बादल छाने लगे,
घर में मोमबत्तियों और दियों से रोशनी आने लगे,
संभलना जब बंगाल में याश तूफ़ान आने लगे।

हवाओं से जब एक दहशत फैलने लगे,
परिंदे घोसलें के बजाए सुराखों में रहने लगे,
टहनियों से जब सड़कों की परत ढ़कने लगे,
संभलना जब बंगाल में याश तूफ़ान आने लगे।

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मुझे अभी भी याद है वो सब जो लोग भूल चुके हैं!
काश मैं भी भुला पाऊ वो सब जो अभी भी याद है मुझे!!

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जब इश्क़ दिमाग के परत में धूल बन कर जमने लगे,
जब उसके दुपट्टे में कोई और शक्स शुकून से सोने लगे,
जब तुम्हारा संबंध महज़ एक याद बन कर ज़हन में उतरने लगे,
ख्याल रखना अपना जब उसके आंसू तुम्हारे आंखों से गिरने लगे।
मोहब्बत किसी और का पर कलंक तुम्हारे माथे लगने लगे,
इतना भी मशगूल ना होना की तुम्हारी जिंदगी तुम्हे ही डरावनी लगे।

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कैसे कहूं कविता नहीं मैं कविता में तुझको लिखता हूं,
अपने ज़ख्म-ए-कलम में स्याही नहीं अपनी आंसू को भिगाता हूं,
काश तू एक बार मेरे इश्क़-ए-पन्ने पर छप कर निखार ला दे,
फिर हंस कर बताऊं दुनिया को की ऐसे मैं कविता सीखता हूं।

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इश्क़ से लोग कई बीमार बैठे है,
हर तरफ आशिक़ शिकार बैठे हैं,
यूं ही नहीं वो इस पेड़ को छोड़ दिया,
वो जानता है इस पेड़ पर अभी पंक्षी हजार बैठे हैं।

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याद,फरियाद,मन्नते,मिन्नतें,ए खुदा और क्या क्या अर्ज करूं मैं तुझसे,
आसुं,ज़ख्म,दर्द,गम,नसीहत,गनीमत क्या ये सब भी कर्ज कर लू मैं तुझसे।

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