कलयुग का जमाना है साहब, आदमी ठोकर खाकर ही सम्भलता है,
कोई हमदर्दी ना दिखाये इसलिये कहते हो, अरे भाई चलता है|
जिस के लिए खुद को बदलते हो तुम, वो और किसी के लिए बदलता है,
कोई हमदर्दी ना दिखाये इसलिये कहते हो, अरे भाई चलता है|
उम्मीदो का सूरज रोज उगता और फिर धीरे धीरे ढलता है,
कोई हमदर्दी ना दिखाये इसलिये कहते हो, अरे भाई चलता है|
अपने को दूर होते देख, उनकी यादों में यह मन खलता है,
कोई हमदर्दी ना दिखाये इसलिये कहते हो, अरे भाई चलता है|
जिसपे किया था आंख मूंद कर विश्वास वो ही आखिरी में छलता है,
कोई हमदर्दी ना दिखाये इसलिये कहते हो, अरे भाई चलता है|
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