चलो थोड़ा दूर चलते है इन शहरो के शोरो से,
किसी शांत ठिकाने कि तलाश मे कुछ दिन के लिए,
थोड़ा सा मैं अपनी ज़िन्दगी को नया सा राग दे दूंगी,
थोड़ा तुम उसमे कुछ गीत भर देना|
कुछ पल सब कुछ भूल कर,
अपने अतीत के दायरों के परे, बिन सोच विचार के
तुमसे कुछ दिल कि गुफ़्तगू करलूँगी,
कुछ अपने मन कि तुम भी बेफिक्र बोल देना|
जहाँ ताजी हवाएं हो फ़िज़ाओं मे,
और लेहेर उठे अपने अल्फाज़ भी,
जो अगर ज्यादा भी बोल् दू मैं कुछ ज़रा,
तुम भी खुदके शब्दों को इनमे शामिल कर लेना|
जहाँ पर तुम तुम होकर भी तुम ना हो, और ना ही मैं हूँ मै,
बस कुछ पल हो कहीं हसीन वादियों के,
और हम एक उसके हिस्से कि तरह उसमे शामिल हो|
नहीं पूछूंगी तुमसे कोई भी सवाल,
तुम भी अपने सवालों पर पूर्णविराम लगा देना,
कुछ मुस्कुराहटें बांट लेंगे दोनों साथ ,
समय कि इन घूमती हुई सुइयों मे,
अगर मे जाने कि भी बोलू,
तो तुम कोई बहाना बना कर रोक लेना |
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