घर की शोभा मंदिर की श्रद्धा, सब तुमसे हैं "नारी"
त्याग,तपस्या,प्यार ,ममता, सब तुमसे सीखे हैं "नारी"।।
मीरा सी भक्ति हैं तुझमे,ज्ञान सरस्वती सा तुझमे "नारी"।
देवकी सी ममता लिये, प्रेम समेटे तुम "नारी"।।
बंदिशो के जकड़न में भी, परचम लहराती तुम "नारी"।
घर की दहलीजों के झगड़ो को,दूर करती तुम "नारी"।।
पिता के घर से विदा होकर भी, दो घर संभालती तुम "नारी"।
तुम भाई की कलाई का गुरूर,अभिमान पिता का तुम "नारी"।।
दायरों के तम को मिटाकर,कुल दीपक बनती तुम "नारी"।
वात्सल्य, करुणा,प्रेमभाव से, घर को महकाती तुम "नारी"।।
कुछ हैवानों की हैवानियत से,चोटिल होती तुम "नारी"।
अब नोच लेना मुहं उन दरिंदो का,चुप मत रहना तुम "नारी"।।
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