ये तुम्हारा नाराज़ हो कर भी, नाराज़गी ना जताना,
परेशान कर रहा है मुझे,
नाराज़गी तो अपनों से होती है, तो क्या मैं अब शामिल हुँ तुम्हारे अपनों मेँ?
मेरा ये दिल सवाल कर रहा है मुझसे,
कहते है सब, नाराज़गी की गहराई बता देती है, कि नज़दीकियां कितनी है,
तो क्या अब मैं और तुम इतने करीब है?
जो कोई रूठने का हक़ रख रहा है मुझसे,
इतने सवालों के जवाब ख़ामोशी से कैसे मिलेंगे,
ये तो रब ही जाने,
मैंने तो इतना ही जाना है,
कि अगर नाराज़ होने का हक़ रखा है,
तो जताने में हर्ज़ नहीं होना चाहिए,
और अगर हर्ज़ है तो हक़ नहीं होना चाहिए !
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