तेरे साथ रहने के कुछ उसूल बनाए हैं,
ये कैद नहीं, बस मोहब्बत के साए हैं।
क़ायदे गर जेल होते तो दिल टूट जाता,
ये तो औज़ार हैं, जो रिश्ते सजाए हैं।
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अंत अनंत को हम क्यों चाहें,
जब पल-पल में हैं रंग समाएं..
क्षणिक है जीवन की माया,
फिर भी सबसे गहरा साया..
अंत ही सुंदरता लाता है,
जैसे विराम कविता गाता है..
अंत ही तो आरंभ बनता है,
हर विराम में अर्थ मिलता है..
क्षण बीते, पर छाप रहे,
जैसे ख्वाबों में साँस बहे..
वक़्त रुके तो जादू खो जाए, जब
बिन गीत धड़कन भी सो जाए।
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हर झोंके में उसकी खुशबू बसी लगती है,
हर बात में उसकी मिठास सी चखी लगती है।
चुप रहती है मगर एहसास जगा देती है,
हर छोटी सी बात में जादू बसा देती है।
वो तन्हा लम्हों को भी शबनम बना देती है,
उजड़ी राहों को फिर से गुलशन बना देती है।
वो मुस्काए तो फिज़ा भी गीत गाती है,
उसकी नज़रों में कायनात मुस्कुराती है।
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कबीरा कहे, जो छुप गया सच उसमें कुछ होय,
छल - छवि जहां प्रेम हो, अंतर से खाली होय ।
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एक दिन कुछ इस कदर थक जाएगा वो बेचारा,
थककर सोएगा फिर कभी उठ न पाएगा दोबारा।
वो जो धिक्कारते थे मुख पर सबके सामने उसे,
फिर कल वो ही उसे फूल चढ़ाने आयेंगे।
कल तक जिसकी बातें तानों में ढली रहती थीं,
आज उसकी चुप्पी पे महफ़िलें सजी रहती हैं।
जिसे कहते थे नाकाबिल, बोझ इस ज़िंदगी की,
अब उसी के नाम पे बातें होंगी बंदगी की।
भीड़ जो हँसती थी उसके टूटी चाल पर,
अब सिसकती है उसी की खाली खाल पर।
जो कहता रहा हर रोज़ – "मैं भी इंसान हूँ",
अब चुप पड़ा है वो, जैसे कोई अंजान हो।
- Gourav Mishra
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वो थक गया था ज़माने से, लड़ते-लड़ते,
ज़माने की बेरहम बातों से उलझते- बिगड़ते।
अब आराम में है, न ताना, न गिला,
बस मिट्टी ओढ़े वो है लेटा अकेला।
ज़रा सोच लेना तुम भी, जब बोलो किसी पर,
हर शब्द का बोझ होता है इक असर।
कहीं ऐसा न हो अगली बार जो गिरे,
वो तुम हो… और कोई देखने वाला न फिरे।
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उसकी नज़रें पढ़ ले दिल की हर बात को,
छू ले ख्वाबों से भी छुपे जज़्बात को।
हुस्न नहीं, वो रूह की सौगात है,
जो छू ले तो जी उठा हर जज़्बात है।
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परछाइयों में अक्सर मिलती है कहानी,
जो दिल में बसी हो अधूरी निशानी।
वो कहता है मुझसे — "मैंने तुझको चुना,"
पर हक़ीक़त में देखा, कोई और ही जुना।
जो ना मिल सका, उसकी तसवीर था मैं,
बस वक्त का एक अधूरा शब्बीर था मैं।
हर बात पे वो बीते लम्हे जोड़ता,
हर गलती को अपने अतीत से मोड़ता।
ना मेरी थी वो याद, ना मेरा था वो पल,
मैं तो बस बन गया, किसी और का हल।
फिर भी निभाया मैंने, वो हर इक रस्म,
क्योंकि इश्क़ में नहीं होती कोई कसम।
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जिनमें स्वेच्छा से त्याग कर सकने का सामर्थ्य नहीं ...
उन्हें स्वैच्छित अर्जन करने का आशीर्वाद ही नहीं ...-
हम साए में रोज़ जलते चले..
ख़ुद अपने ही रंग बदलते चले..
न था कोई मंज़िल, न था कोई राह..
मगर फिर भी क़दम सँभलते चले..
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वो चले तो हवाएं भी सजती हैं राहों में,
चांदनी सी उतरती है ख्वाबों की बाहों में।
उसकी आंखों में है कोई रूहानी सी बात,
जो देखे, वो खो जाए इबादत की आहों में।
उसकी नज़रें पढ़ ले दिल की हर बात को,
छू ले ख्वाबों से भी छुपी जज़्बात को।
हुस्न नहीं, वो रूह की सौगात है,
जो छू ले तो जी उठा हर जज़्बात है।
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