एक दिन कुछ इस कदर थक जाएगा वो बेचारा,
थककर सोएगा फिर कभी उठ न पाएगा दोबारा।
वो जो धिक्कारते थे मुख पर सबके सामने उसे,
फिर कल वो ही उसे फूल चढ़ाने आयेंगे।
कल तक जिसकी बातें तानों में ढली रहती थीं,
आज उसकी चुप्पी पे महफ़िलें सजी रहती हैं।
जिसे कहते थे नाकाबिल, बोझ इस ज़िंदगी की,
अब उसी के नाम पे बातें होंगी बंदगी की।
भीड़ जो हँसती थी उसके टूटी चाल पर,
अब सिसकती है उसी की खाली खाल पर।
जो कहता रहा हर रोज़ – "मैं भी इंसान हूँ",
अब चुप पड़ा है वो, जैसे कोई अंजान हो।
- Gourav Mishra
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वो थक गया था ज़माने से, लड़ते-लड़ते,
ज़माने की बेरहम बातों से उलझते- बिगड़ते।
अब आराम में है, न ताना, न गिला,
बस मिट्टी ओढ़े वो है लेटा अकेला।
ज़रा सोच लेना तुम भी, जब बोलो किसी पर,
हर शब्द का बोझ होता है इक असर।
कहीं ऐसा न हो अगली बार जो गिरे,
वो तुम हो… और कोई देखने वाला न फिरे।
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उसकी नज़रें पढ़ ले दिल की हर बात को,
छू ले ख्वाबों से भी छुपे जज़्बात को।
हुस्न नहीं, वो रूह की सौगात है,
जो छू ले तो जी उठा हर जज़्बात है।
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परछाइयों में अक्सर मिलती है कहानी,
जो दिल में बसी हो अधूरी निशानी।
वो कहता है मुझसे — "मैंने तुझको चुना,"
पर हक़ीक़त में देखा, कोई और ही जुना।
जो ना मिल सका, उसकी तसवीर था मैं,
बस वक्त का एक अधूरा शब्बीर था मैं।
हर बात पे वो बीते लम्हे जोड़ता,
हर गलती को अपने अतीत से मोड़ता।
ना मेरी थी वो याद, ना मेरा था वो पल,
मैं तो बस बन गया, किसी और का हल।
फिर भी निभाया मैंने, वो हर इक रस्म,
क्योंकि इश्क़ में नहीं होती कोई कसम।
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जिनमें स्वेच्छा से त्याग कर सकने का सामर्थ्य नहीं ...
उन्हें स्वैच्छित अर्जन करने का आशीर्वाद ही नहीं ...-
हम साए में रोज़ जलते चले..
ख़ुद अपने ही रंग बदलते चले..
न था कोई मंज़िल, न था कोई राह..
मगर फिर भी क़दम सँभलते चले..
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वो चले तो हवाएं भी सजती हैं राहों में,
चांदनी सी उतरती है ख्वाबों की बाहों में।
उसकी आंखों में है कोई रूहानी सी बात,
जो देखे, वो खो जाए इबादत की आहों में।
उसकी नज़रें पढ़ ले दिल की हर बात को,
छू ले ख्वाबों से भी छुपी जज़्बात को।
हुस्न नहीं, वो रूह की सौगात है,
जो छू ले तो जी उठा हर जज़्बात है।
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बाज़ आए हम सियासत से अदावत की तरह,
अब न तालीम मिले ज़ख़्म की राहत की तरह।
हर नक़ाब में छुपी देखी है साज़िश कोई,
अब नसीहत नहीं, चुप ही इबादत की तरह।
ज़िन्दगी उलझनों का मेला बन चुकी है,
चलो तनहाई को अपनाया जाए राहत की तरह।
ना गिला, ना वफ़ा, ना कोई उम्मीद रहे,
बस जो भी है, उसे चाहा जाए मोहब्बत की तरह।
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मैं सबके लिए शायर हूं,
तेरे लिए खुद कविता बन जाता हूं।
तेरे खयालों में खुद को यूं हर रोज़ सजाता हूं,
दुनिया की भीड़ में बस तुझमें खुद को पाता हूं।
ये ज़िंदगी तो बस एक सफ़र है उलझनों का,
और तू सबसे हसीन असर है
मेरी ख़ामोश दुआओं का ।
हर किसी को सुनाता हूं ग़ज़ल,
तुझमें खुद को ही गुनगुनाता हूं।
मैं सबके लिए शायर हूं,
तेरे लिए खुद कविता बन जाता हूं।-
एक दिन कुछ इस कदर थक जाएगा वो बेचारा .. थककर सोएगा फिर कभी उठ न पाएगा दोबारा ।
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वो न था कोई साया, न कोई छलावा,
बस एक इंसान था, जो था थोड़ा कच्चा, थोड़ा सच्चा।
उसके लब खामोश थे, पर दिल में शोर था,
हर मुस्कान के पीछे छुपा कोई ज़ोर था।
कभी आइना बना, कभी परछाई बना,
हर किसी की उम्मीदों की रिहाई बना।
पर आज पूछता है, ज़रा ठहर के सोचो,
क्या मिला उसे जो बस निभाता रहा हर रोज वो?
जब आंखें भर आएं और जवाब न मिले,
तो जानना, किसी के भीतर भी एक गुमनाम दिल जले।
कहानी उसकी न थी जो कह न सका,
बल्कि उसकी थी, जो सब कुछ सह न सका।-