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ज़िन्दगी मेरी मुझसे तुम तक का सफर ही तो है। -
ज़िन्दगी मेरी मुझसे तुम तक का सफर ही तो है।
है ठहरा हुआ ये मौसम, है ठहरी हुई ज़िन्दगी। सफ़र है सफ़र दर ज़िन्दगी में, है खामोश क्यों ज़िन्दगी। -
है ठहरा हुआ ये मौसम, है ठहरी हुई ज़िन्दगी। सफ़र है सफ़र दर ज़िन्दगी में, है खामोश क्यों ज़िन्दगी।
तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। तराना बिन साज सा जीवन सुना रह जाएगा। तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। आँखों कि ये चमक आईना हो जाएगा। तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। ना खुशबू बिन रंग गुल बेमज़ा हो जाएगा। तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। आकाश सा सुना जीवन का हर कोना हो जाएगा। तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। ग़ज़ल का हर हर्फ हो तुम, पढ़लो मुकम्मल अधुरा हो जाएगा। तुम यूँ मत जाना, प्रेम अधुरा रह जाएगा। -
तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। तराना बिन साज सा जीवन सुना रह जाएगा। तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। आँखों कि ये चमक आईना हो जाएगा। तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। ना खुशबू बिन रंग गुल बेमज़ा हो जाएगा। तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। आकाश सा सुना जीवन का हर कोना हो जाएगा। तुम यूँ मत जाना प्रेम अधुरा रह जाएगा। ग़ज़ल का हर हर्फ हो तुम, पढ़लो मुकम्मल अधुरा हो जाएगा। तुम यूँ मत जाना, प्रेम अधुरा रह जाएगा।
ये वो मंजिल नहीं जहाँ ठहर जाता है सफर, पाकर ही मंजिल को, ये कारवाँ चलता है। -
ये वो मंजिल नहीं जहाँ ठहर जाता है सफर, पाकर ही मंजिल को, ये कारवाँ चलता है।
उससे मुहब्बत है उसी से छुपाते है। इश्क़ कर के ,शाह' इश्क़ से छुपाते है। आँखें आईना हो जाने से घबराते है, उसी को देख कर उसी से नजर चुराते है। -
उससे मुहब्बत है उसी से छुपाते है। इश्क़ कर के ,शाह' इश्क़ से छुपाते है। आँखें आईना हो जाने से घबराते है, उसी को देख कर उसी से नजर चुराते है।
मुस्कान सजा कर चेहरे पर, वो नजर नजर से मिलती है। काजल को आँखों में भर कर, वो मेरे सपनो में आती है। बस बिन्दियांँ का श्रृंगार है उसका, ना कोई फैशन अपनाती है। पायल की झनकार लिए वो, साज सुहाना गाती है। खुशबू सी हवाओ में वो, अपनी महक छोड़ जाती है। सुबह से शाम तलक फिर, उसकी आरजू सताती है। -
मुस्कान सजा कर चेहरे पर, वो नजर नजर से मिलती है। काजल को आँखों में भर कर, वो मेरे सपनो में आती है। बस बिन्दियांँ का श्रृंगार है उसका, ना कोई फैशन अपनाती है। पायल की झनकार लिए वो, साज सुहाना गाती है। खुशबू सी हवाओ में वो, अपनी महक छोड़ जाती है। सुबह से शाम तलक फिर, उसकी आरजू सताती है।