Gopal Lal Bunker   (GOPAL 'SAUMYA SARAL')
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Joined 17 January 2019


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Joined 17 January 2019
28 APR AT 22:50

ग़ज़ल
°°°°°°°°°

'जोड़-बाकी, गुणा-भाग' की ज़िन्दगी
खेल अय्यार का हो रही ज़िन्दगी//१//

ज़िन्दगी आम की 'तीन दो पाँच' है
हो हिसाबी सितम है बनी ज़िन्दगी//२//

आज 'दो और दो पाँच' होने लगे
चाल काफ़िर चले ख़ूँ लगी ज़िन्दगी//३//

'नाम-बदनाम' से काम जितने हुए
ब्रांड के नाम उतनी हुई ज़िन्दगी//४//

'आदमी-आम' मज़बूर हो जी रहा
साँस का दंश है झेलती ज़िन्दगी//५//

हर ज़ुबाँ पे सजे 'लफ़्ज़ बारूद के'
रोज़ शो'ला-फ़िशाँ हो जली ज़िन्दगी//६//

हर ज़हर रात के बाद का हर्फ़ है
हर ज़हर में 'सरल' है छुपी ज़िन्दगी//७//

✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'












-


24 APR AT 16:43






संसार, संसार न होता
अगर शब्द न होते,
शब्द कितने कैसे-कैसे होते हैं-
जब ब्लैक एंड व्हाइट होते हैं,
कितना नीरस कर देते हैं लाइफ को,

पर जब ये कलर्ड हो जाते हैं तो-
ज़िन्दगी के अंदाज बदल जाते हैं
हवा बदल जाती है घर और मन की,

शब्द न होते तो ज़िन्दगी वैक्यूम होती
हम त्रिशंकु में कचरा बनकर
इधर-उधर भटक रहे होते,

कितना अच्छा है शब्दों का संसार!
शब्दों के संसार से ही ये संसार है,
शब्दों का ये संसार ब्लैक एंड व्हाइट हो
या कलर्ड हो, बस बुरा न हो, चुभता नहीं हो
गांठ न बनता हो, स्लैंग या गालियों का न हो,

वर्ना ये संसार भी संसार न रहेगा
रहेंगे तो बस कुछ बजते हुए बर्तन रहेंगे
और हम!... तैयार रहेंगे बजने के लिए...

✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'

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24 APR AT 9:41

जल/ नीर/ पानी
•••••••••••••••••••••
( गतांक से आगे )

भूप बने सब जल के होते।
काम हुआ हर जल के स्रोते।।
जीव सभी, जन, जंगल, औषधि।
हैं जल से सुख की सर्वोषधि।।६।।

जल कुबेर निधि है जीवन की।
रक्षण करना कर विधि धन की।।
रीत हमारा धन जाए जब।
और कमाया वह जाए तब।।७।।

जल का यह धन जब रीतेगा।
रक्त सभी का तब सूखेगा।।
धन अपरा काम न आएगा।
अंश परा यह प्राण हरेगा।।८।।

अभी समय है रे जगवालो।
जल के रक्षण का प्रण पालो।।
आप बचो फिर जगत बचाओ।
पूर्व मरण से कुछ कर जाओ।।९।।

तोय उबारो सकल धरा पर।
क्षीर पयोनिधि बनो बराबर।।
जल निधि का कोष भरो तुम।
बूंद बचा नव प्राण बनो तुम।।१०।।
* * *
✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'

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24 APR AT 9:34

जल/ नीर/ पानी
•••••••••••••••••••••
एक अचम्भा सोम धरा का।
जीवनदायी अंश परा का।।
क्षीर जनार्दन मन मुस्काया।
नभ के पथ ने नीर बनाया।।१।।

मेघ उड़े जल कण बरसाने।
ताल भरे नदियाँ हरसाने।।
जल ने फिर उत्पात मचाया।
प्रलय भयंकर चहुँदिशि छाया।।२।।

लगी बनाने नदियाँ सागर।
क्षीर चला रचने तन गागर।।
स्रोत हुआ जल जब जीवन का।
जीव बना 'मनका' तब तन का।।३।।

जल जीवन हो सोम बना फिर।
प्यास बना हो छटपट आखिर।।
मीन हुई प्रति काया जल की।
जल ही शक्ति बनी प्रति पल की।।४।।

धार धरा की जल है पावन।
पाकर ही प्रति पल है सावन।।
मिले नहीं तो खतरा सबको।
झटपट मौत दिखे जीवन को।।५।।
............. निरंतर
✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'

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21 APR AT 11:15

तीन तिगाड़े काम बिगाड़े
•••••••••••••
तीन डगर चुन चलते आड़े।
तीन तिगाड़े काम बिगाड़े।।
बिन समझे गठबंधन जोड़े।
रिश्ते-नाते उर के तोड़े।।१।।
नर ऐसे होते हैं बाँकें।
झूठ बोलकर देते टाँकें।।
बात-बात में मतलब साधे।
मतलब बोले राधे-राधे।।२।।
'मति, मत' के ये 'चोर पुराने'।
नाम जपाकर भरे खजाने।।
राम-खुदा की बातें करते।
स्वांग रचा सुख खेती चरते।।३।।
सोच‌-समझकर चल रे भाई।
देख तनिक शठ हैं या साँई।।
'मति, मत' को तू सीधा कर ले।
ढोंग भगाकर वर नव धर ले।।४।।
उल्टी-सीधी सोच हमारी।
'तीन तिगाड़े करे सवारी'।।
शठ का जोर चले फँसते हम।
'दिशा-दशा' से फिर आता तम।।५।।
सुमति कुमति हो काम बिगाड़े।
दुर्जन संगत शाप दहाड़े।।
चाल कुटिल आ उर में बैठे।
सज्जन से लड़ लड़कर ऐंठे।।६।।
'कुमति' और 'शठ नर' की 'संगत'।
तीन तिगाड़े की है रंगत।।
बचकर सारे इनसे रहना।
'दुष्ट-तिमिर' को 'टा-टा' कहना।।७।।
'सज्जन-संगत' सदा सहाई।
दुष्ट-दलन की एक दवाई।।
काम भले सब इससे होते।
भले मनुज लेते सुख गोते।।८।।
✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'

















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10 APR AT 22:37

कह मुकरियाँ
••••••••••••••
{ 1 }
इधर उधर वो मँडराता है
नार धरा के दिल भाता है
उसकी छुअन के सब हैं कायल
ए सखि साजन! ना सखि बादल।

{ 2 }
संकट में वो साथ निभाए
हाथ पकड़ शैतान भगाए
कहूं जिसे मैं मन का नीरज
ए सखि साजन! ना सखि धीरज।

{ 3 }
टुक-टुक देखूं झाँक झरोखे
भाए सखि अंदाज अनोखे
मीठे-मीठे उसके तेवर
क्या सखि साजन! नहिं सखि घेवर।
* * *
✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'

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9 APR AT 5:33


कह मुकरियाँ
•••••••••

{ 1 }
इधर उधर वो मँडराता है
नार धरा के दिल भाता है
उसकी छुअन के सब हैं कायल
ए सखि साजन! ना सखि बादल।

{ 2 }
संकट में वो साथ निभाए
हाथ पकड़ शैतान भगाए
कहूं जिसे मैं मन का नीरज
क्या सखि साजन! ना सखि धीरज।

✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'

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8 APR AT 18:31

कह मुकरी
•••••••••••••••••••••••

इधर उधर वो मँडराता है
नार धरा के दिल भाता है
उसकी छुअन के सब हैं कायल
ए सखि साजन! ना सखि बादल।

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8 APR AT 17:40


उदास रातें
कचोटती बातें,
कहे रिश्तों की बातें।

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7 APR AT 18:09

माहिया ( टप्पे )
°°°°°°°°°°°°°°°

प्यारे सजना मेरे,
रहती हूँ तन्हा
हैं बेचैन बसेरे।

ले तस्वीर हमारी,
बातें करना तुम
याद मिटेगी सारी।

घुटती हूँ तेरे बिन,
मैं घर में' अकेली
रे कैसे' गुजारूँ दिन।

सजनी रे अलबेली,
अपनी बातों की
रख तू साथ सहेली।

ओ रे साजन मेरे,
ये याद तुम्हारी
जाती' नहीं बिन तेरे।

तुम आ जाओ वरना,
याद में' तेरी अब
मुझको पड़ेगा मरना।

सजनी बढ़के तुमसे,
है कुछ भी' नहीं जी
हम आ' मिलेंगे तुमसे।

✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'

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