खटे है दिन मगर क्यों शाम के घर आती है मजदूरी? तुम्हें वेतन मुबारक़ हो मुझे अच्छी है मजदूरी मैं सूनी एक खिड़की को तका करता हूँ सुब्ह-ओ-शाम मेरी मजदूर आँखों को झलक उनकी है मजदूरी #मजदूर_दिवस
हसीं नज़रों से देखा था किसी ने इक नज़र हमको दवाएँ क्या दुआएँ भी रहीं फिर बे-असर हमको बता दें किसलिए हम रास्तों से इश्क़ करते हैं! हक़ीक़त मंज़िलों की क्या है इसकी है ख़बर हमको