Ghazala Tabassum  
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Poet, Asansol (W B)
Joined 19 December 2016


Poet, Asansol (W B)
Joined 19 December 2016
22 APR AT 16:35

इस ज़मीं को सदा हरा रखना
रब के आगे है ये दुआ रखना

कौवे आते हैं आज भी प्यासे
छत पे खाली न अब घड़ा रखना

अब न आंगन रहा न ही उपवन
घर में मुमकिन नहीं कुंआ रखना।

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22 APR AT 16:21

ज़मीं को अब दरख़्तों से सजाने की ज़रूरत है
ज़माने को तबाही से बचाने की ज़रूरत है।

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28 MAR AT 23:33

सुनसान संगे राह में कितना सुकून है
जंगल तेरी पनाह में कितना सुकून है

होते हैं रूबरू कई गुज़रे हसीन पल
यादों की सैरगाह में कितना सुकून है

दामन भरा है दिन का उजालों से बिल यक़ीं
पर शब की भी सियाह में कितना सुकून है

नज़रें बचा के ख़्वाहिशों , तेरी निगाहों से
ठंडी सी दिल की आह में कितना सुकून है

देखा न तुमने रुक के किसी एक गाम पर
क्या जानो तुम निबाह में कितना सुकून है

मिल कर गले हम मौत के इक दिन बताएंगे
इस जीस्त से फ़लाह(मुक्ति) में कितना सुकून है

दिल ही लगाना है तो उसी से लगा के देख
उस रब की बारगाह में कितना सुकून है।

ग़ज़ाला तबस्सुम

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27 MAR AT 23:39

हम से हमारे रूठे सजन बोलने लगे
ख़ामोश मन के वन में हिरन बोलने लगे

गालों पे मोतियों की लड़ी झूलने लगी
अपनी जुबां में जब ये नयन बोलने लगे

जब रंग बंदगी का चढ़ा सर पे इश्क़ के
लब बेख़ुदी में राधा किशन बोलने लगे

परवाह ख़्वाहिशों की ज़रूरी है जानेमन
इतना भी मत दबा कि घुटन बोलने लगे

मनमानियां हवाओं की सहते तो कब तलक
पत्ते लरज उठे थे,सुमन बोलने लगे

लाएंगी इंकिलाब यही बेटियां अगर
हक़ के लिए हर एक किरण बोलने लगे

सब चाहते थे कुछ तो "तबस्सुम" कहे कभी
चुप हो गए सभी जो हमन बोलने लगे।

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27 MAR AT 23:37

करते हैं संग ह़ाल बयाँ पाश पाश का
शायद अधूरा ख़्वाब है पैकर तराश का

कांधों पे बोझ लाद लिया अपनी लाश का
यूँ ख़त्म इक सफ़र हुआ ख़ुद की तलाश का

मिलने लगी हैं आहटें हर सू बहार की
घुलने लगा है रंग फ़िज़ा में पलाश का

भाने लगी है ख़ुशबू नए गुल की अब उन्हें
हर ख़्वाब यूँ है बिखरा ,घरौंदा हो ताश का

जाकर रुकी हैं ख़्वाइशें जिस एक लफ़्ज़ पर
अब तो सफ़र हो ज़ारी उसी लफ़्ज़े काश! का

उतरे खरे न 'ख़े' के तल्लफ़्फुज़ पे बज़्म में
झट दे गए बहाना गले की ख़राश का

पहना दिया है लोगों ने हंसते हुए कफ़न
अश्क़ों से ग़ुस्ल हो गया जब मेरी लाश का

संग,, पत्थर
पाश पाश,, टुकड़े टुकड़े
पैकर तराश,,मूर्तिकार
तल्लफ़्फुज़..उच्चारण
गुस्ल… स्नान

ग़ज़ाला तबस्सुम

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27 MAR AT 23:36

भीगा भीगा सा तसव्वुर तेरा,कल की बारिश
रात भर होती रही जैसे कंवल की बारिश

टूट कर बरसो भिगो दो, कि है प्यासी ये ज़मीं
तिश्नगी और बढ़ा देती है हल्की बारिश

जिससे आ जाए मेरे गांव की मिट्टी की महक
ऐ घटाओ करो आ कर उसी जल की बारिश

जेह्न पर छाए ख्यालों के घेनेरे बादल
कैसे होती न भला आज ग़ज़ल की बारिश।

ग़ज़ाला तबस्सुम

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27 MAR AT 23:36

साथ इक दूजे के रहते हैं फना होते हैं
क्या कभी फूल भी खुशबू से जुदा होते हैं


और कुछ काम भी उल्फ़त के सिवा होते हैं
हर किसी से कहाँ हर फ़र्ज़ अदा होते हैं।

उम्र आधी तो मेरी उनको मनाते गुज़री
एक ग़लती पे कई बार खफ़ा होते हैं

वक़्त ताबीर लिये साथ जो आता है दिन
ख़्वाब कुछ रात की पलकों से रिहा होते हैं

ऐसा दीवाना कहाँ और मिलेगा तुमको
हर अदा पे तेरी सौ बार फिदा होते हैं

हौसला,फ़िक्र ,दुआ और मुहब्बत सब की
राहे पुरख़ार पे हमराह सदा होते हैं

उनका अंदाजे़ मुहब्बत ही जुदा है सबसे
वो ख़यालों में ही मिलते हैं जुदा होते हैं

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27 MAR AT 23:35

यादें तुम्हारी फेंक दूं कैसे निकाल कर
दिल के क़फ़स में रख्खी है मुद्दत से पाल कर

मैं हूँ सही तो मान दलीलें सभी मेरी
लगती मैं हूँ ग़लत अगर, आकर सवाल कर

सह लेती हूँ वफा में तेरी बदतमीजियां
जो वक़्त साथ गुज़रा है उसका ख़याल कर

क्या खूब प्यार का सिला तूने दिया मुझे
बरसों के इंतज़ार को लम्हे में टाल कर

शामिल नहीं हूँ ऐसी जमाअत में आज भी
हमदर्दी चाहिए जिन्हें जज़्बा उछाल कर

यूँ ही तो पुरअसर नहीं अशआर हो गए
लिख्खा है लफ्ज़ दर्द में थोड़ा उबाल कर

होना था जो भी हो चुका अंजाम इश्क का
क्या फ़ायदा है अब न तबस्सुम मलाल कर।

ग़ज़ाला तबस्सुम

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27 MAR AT 23:34

अलग बोली है पर नाला सुनाई साफ़ देता है
परिंदा भी रिहाई की दुहाई साफ़ देता है

बुज़ुर्गी आज भी मुझसे है ज़रा सी दूर ही ठहरी
नज़र कमज़ोर है लेकिन सुनाई साफ़ देता है।

मिला मुझको नहीं विरसे में कोई घर ज़मीं या ज़र
बहन को इक छुपा संदेश भाई साफ़ देता है

रक़म जो कुछ किया हमने वही वापस भी पाना है
यूं मुस्तक़बिल हमें अपना दिखाई साफ़ देता है

धुले होते हैं बारिश में शजर परबत डगर छप्पर
नज़ारा गांव का दिलकश दिखाई साफ़ देता है।

ग़ज़ाला तबस्सुम

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27 MAR AT 23:33

पुख़्ता हो हर सड़क भी, कुशादा भी चाहिए
सर पे हमें दरख़्तों का साया भी चाहिए

क्या क्या तुझे अता करूं ऐ दिल मुझे बता
है चांद की तलब भी,सवेरा भी चाहिए

इस दिल की ख़्वाहिशों की कोई इंतहा नहीं
जब मिल गया है साथ,सहारा भी चाहिए

बच्चों पे कुछ तो रह्म किया कर ऐ मुफ़लिसी
रोटी के साथ उनको खिलौना भी चाहिए

फ़ितरत हमारी औरों से बिल्कुल जुदा नहीं
सस्ता भी चाहिए हमें अच्छा भी चाहिए

मरती नहीं है भूख सुख़नवर की दाद से
भूखे शिकम को उनके निवाला भी चाहिए।

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