Gaurav Singh   (गौरव सिंह)
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न्याय की तलाश में, अन्याय सा होता रहा हूँ।
मिथ्या से होके पराजित, सत्य को बोता रहा हूँ।।
Joined 21 May 2018


न्याय की तलाश में, अन्याय सा होता रहा हूँ।
मिथ्या से होके पराजित, सत्य को बोता रहा हूँ।।
Joined 21 May 2018
21 DEC 2021 AT 23:58

दूरी बेहतर है..
जब पास आने पर मन में केवल घबराहटें हों
तो दूरी बेहतर है..
जब तय हो कि पास रह पाना मुमकिन नही है अब
तो दूरी बेहतर है..
जब इस बात का डर हो कि इक और बार उससे बात होने पर या उसे देख भर लेने से आप इश्क़ में फिर डूब जाओगे
तो दूरी बेहतर है..
जब उसे आप की ज़रूरत ही नहीं शायद पर धड़कन उसी का नाम ले हर पल तब भी
दूरी ही बेहतर है..
आपको अभी और मजबूत बनना होगा..
चाहे आप कितने भी नरम हो..
इस नियति के खेल में
दूरी ही बेहतर है..
ख़ामोशी ही बेहतर है..
कभी कभी लगता है अपनी भावनायें उतनी गहरी ही नहीं शायद जो मेरे दिल का संदेश उन तक पहुँचा पाती हों..
तो अगली बार पूरे सच्चे इश्क़ की चाह में
अभी की दूरी बेहतर है..

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20 OCT 2021 AT 13:32

आज-कल सपनों में बहुत आ रही हो तुम..
मैं तुमको भूलने की कोशिश में हूँ
एक तुम हो, क्यों याद आ रही हो तुम?
आना है तो हक़ीक़त में आओ,
खामख्वाह बेसब्री बढ़ा रही हो तुम..
तुम्हारे मिलने के वादे पे यकीन है मुझे
तुम ना आई तो, मेरी आस टूट जाएगी
तुम्हारी मर्ज़ी पे ही तो टिका है
मेरे इश्क़ का मुक्कम्मल होना..
ये जानती हो ना?
फिर भी मुझपे ये सितम ढा रही हो तुम?
आज-कल सपनों में बहुत आ रही हो तुम..
जब सपनों में तुम मिलने आती हो..
मुझसे बातें करती हो, मुझ पर हक जताती हो..
सुनो, मैं तुमसे बस इतना ही कहूँगा..
फिर से मुझे कब अपना बना रही हो तुम?
आज-कल सपनों में बहुत आ रही हो तुम..

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13 FEB 2021 AT 23:16

समुन्दर रेत का हो या पानी का, किनारे मिल ही जाते हैं..जब तुम साथ हो "जाना"
बातें आँखें करती है, वक़्त थमता है, हवा बहती है ले कुछ ख़ाब.. बस तुम साथ हो "जाना"

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23 JAN 2021 AT 19:18

ये मेरा आखिरी ख़त है तुम्हें..
अब मुझे ये लगने लगा है..
खुद ख़त सा हो गया हूँ मैं..
जैसे बिना अक्षरों, भावों के
ख़त केवल कोरा कागज़ है
वैसे ही बिना तुम्हारे, जाना..
मैं भी हूँ खाली खाली सा..
मेरे पागलपन को समेटे हुए..
ये मेरा आखिरी ख़त है तुम्हें
तुम्हारी आँखों को समर्पित..
मेरी अनुनय विनय सँजोये
ये मेरा आखिरी ख़त है तुम्हें
मेरी शिकायतों से भरा हुआ
विफलताओं का लेखाजोखा
ये मेरा आखिरी ख़त है तुम्हें
दुःख भी दिए होगे मैंने बहोत
मेरे किये हुए का माफ़ीनामा
ये मेरा आखिरी ख़त है तुम्हें

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8 DEC 2020 AT 21:48

ज़ाकिर भाई कहते हैं..
वैसे तो मैं सख्त लौंडा हूँ
पर यहाँ मैं पिघल गया..
उनका सुन मुझसे कहती हो
कि तुममें भी काफी सख्ती है
तो बतादूँ
तुम पिघलो चाहे सख्त रहो..
बस जहाँ भी रहो बिल्कुल मस्त रहो

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8 DEC 2020 AT 6:42

मैं और तुम नदी के आमने सामने के किनारों पर खड़े हैं..
और बीच में पानी की जगह आँसू भरे हैं..
सुकून और सुख के कश्ती की,
तलाश भी दोनों को है..
बनें हमसफर इक दूजे के,
ये आस भी दोनों को है..
पर ये नाव, शायद किसी एक के लिए ही है..
तो ज़मी पे दोनों कश्मकश में खड़े हैं
दूसरा छूट ना जाए किनारे पर ही कहीं?
इस ख़ौफ से देखो दोनों ही रुक पड़े हैं
कहते हैं पहले आप नहीं नहीं पहले आप,
लगता है दोनों ज़िद पर अड़े हैं
क्योंकि अकेले पहुँचना लक्ष्य नहीं है..
लक्ष्य तो साथ-साथ चलने में है..
बिखेरना है सफ़र में प्रेम प्रकाश..
सूकून भी साथ-साथ ढलने में है..
यहीं सोच कश्ती को हमने छोड़ दिया है..
और नदी पर पुल बनाकर,
दोनो किनारों को आपस में जोड़ लिया है..
उस पर दोनों हाथ पकड़कर चलते जाते हैं..
प्रेमभाव से दोनों आगे ही आगे बढ़ते जाते हैं..

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13 OCT 2020 AT 3:10

तुम कुछ दूरी पर ही हो मुझसे..
शायद अब दूरी की ही कहानी है..
क्या तुमने ही ये यादें भेजीं हैं..
मैं रोज़ जिन्हें जगता पढ़ता हूँ..
सचसच बतलाओ क्यूँ भेजीं हैं?
जबकि बातें तो बहुत पुरानी हैं..
मैं भीतर से पूरा सूख चुका हूँ..
अब बाहर भी रूह तपानी है..
क्या अब भी बारिश होती है?
नदियों में अब भी बाकी पानी है?
क्यूँ तुम्हारी तम्मन्ना,
कभी खत्म नहीं होती है?
क्यूँ तुम्हारे अक्स,
अब भी झीलों में दिखते हैं?
सबके साथ भी, ऐसा ही होता है?
या मुझ अकेले की ही परेशानी है?

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16 AUG 2020 AT 9:45

कसम से कह रहे हैं आप ना बहुत लजाते हैं..
अपने सख़्त लहजों में भी बस नर्मी दिखाते हैं..
सच कहूँ?
इन आँखों में ही तो सारी खूबसूरती बसती है..
इन्हींके साथ खोयी सी वो इक लड़की रहती है..
कुछ खबर है आपको?
वो सारे शायर जो आपकी सादगी के क़ायल हैं
याद कर आपको, आप ही के नग़मे गुनगुनाते हैं..
खिलती हैं कलियाँ, फूल सारे खिलखिलाते हैं..
जब अपनी ही अदा से आप थोड़ा मुस्कुराते हैं..
कसम से कह रहे हैं आप ना बहुत ही लजाते हैं..

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16 AUG 2020 AT 9:15

इस पार से उस पार तक..
बनी बिगड़ी हर बात तक..
हँसी ठिठोली की चहक से,
ख़ामोशी की ज़ुबान तक..
ख़यालों से लेकर ख़ाब तक..
सारे सवालों के जवाब तक..
साँसों में बसे ज़ज़्बात तक..
सुबह से लेकर रात तक..
वजूद से बिना वजूद तक..
हर पल एक साथ रहें हम..
ये ज़रूरी नहीं अब लेकिन..
वो एहसास जब तक साथ है..
सब सुखमय है सब यथार्थ है..

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28 JUN 2020 AT 23:37

क्या ऐसे ही जितने लोग मिलें हैं..
जिनके साथ कई दौर गुज़रे हैं..
हर पल मन मंदिर के आराध्य..
जीवन की स्वासों में बसने वाले..
पल-पल में बस बिछड़ जाएँगे..?
ये मिलने बिछड़ने का सिलसिला..
कब तक, कैसे चलेगा आख़ीर..?
जब साथ बिताये लम्हों में भी..
हक़ीक़त सबको समझाने वाले..
कहानी खुद की कल भूल जाएँगे..
चलते-चलते मनचाही राहों पे..
मनमानी करके गिरते जाते हैं..
गिरना फिर भी कितना अच्छा है..
बहुत बुरा होगा कि गिरने वाले..
गिर-गिर के फिर सम्हल जाएँगे..
मुझे तुच्छ कहने वालों सुन लो..
मैं राख हूँ, मेरा क्या ही होगा..?
जो कुलीन अति-भाग्यबली हैं..
वो खुद को सूरज समझने वाले..
फिर भी क्यों शाम में ढल जाएँगे..?
अनजान हो गया हूँ क्या तुमसे..?
क्यूँ बेरुख़ी से पेश आते हो जाना..
मुझे भुला दिया है, ये याद है क्या..?
नहीं? तो मुझे बाद में भुलाने वाले..
मेरे किरदार में खुद को भूल जाएँगे..

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