आज-कल सपनों में बहुत आ रही हो तुम..
मैं तुमको भूलने की कोशिश में हूँ
एक तुम हो, क्यों याद आ रही हो तुम?
आना है तो हक़ीक़त में आओ,
खामख्वाह बेसब्री बढ़ा रही हो तुम..
तुम्हारे मिलने के वादे पे यकीन है मुझे
तुम ना आई तो, मेरी आस टूट जाएगी
तुम्हारी मर्ज़ी पे ही तो टिका है
मेरे इश्क़ का मुक्कम्मल होना..
ये जानती हो ना?
फिर भी मुझपे ये सितम ढा रही हो तुम?
आज-कल सपनों में बहुत आ रही हो तुम..
जब सपनों में तुम मिलने आती हो..
मुझसे बातें करती हो, मुझ पर हक जताती हो..
सुनो, मैं तुमसे बस इतना ही कहूँगा..
फिर से मुझे कब अपना बना रही हो तुम?
आज-कल सपनों में बहुत आ रही हो तुम..
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