G.r. Batra   (Gitansh Batra)
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Joined 11 April 2021


Joined 11 April 2021
16 APR 2023 AT 11:42

अंधेरे से इश्क है मगर।
उजाले की बात कुछ और थी।।

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16 APR 2023 AT 11:28

गीतांश मेरी मांग में सिंदूर भर अपने प्यार का।
नौलखा पहना गले में अपने बाहों के हार का।।

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16 APR 2023 AT 11:09

कान्हा तेरी ही छवि बसी है मेरे अंतर्मन में।
दिल में न सही जगह देना अपने चरण में।।

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16 APR 2023 AT 8:26

//मेरा चेहरा किताब सा//
मेरे दिल के जज़्बात हो जाते हैं जाहिर।
क्या मेरा चेहरा किताब सा है।।

एक-एक करके सब दे रहे मुझे दगा।
जैसे कोई पुराना हिसाब सा है।।

असली नकली के जंजाल में फँसा हूँ।
हर किसी के चेहरे पर नकाब सा है।।

मुझे देख कर आज वो मुस्कुराया है।
कितना हसीन ये ख़्वाब सा है।।

मेरे चिथडो़ को देख ग़रीब समझती हो।
अंदर झांँक दिल मेरा नवाब सा है।।

अँधेरे में मिलने आती है अक्सर वो।
मेरा महबूब हसीन माहताब सा है।।

मेरे अंधेरे जीवन में उजाला है गीतांश।
क्योंकि महबूब मेरा आफ़ताब सा है।।

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14 APR 2023 AT 21:01

काले लिबास में संगमरमर सा एहसास तेरे झलक में।।
जैसे चाँदनी रात में कोई चांँद निकला हो फलक में।।

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14 APR 2023 AT 20:42

गीतांश न जाने क्यों तुझसे इश्क बेहद किया मैंने।
वरना तो दुनिया में हर किसी को मुस्तरद किया मैंने।।

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14 APR 2023 AT 15:07

तेरे जाने के बाद मेरे चाँद न पूछ मेरा दिल कितना तरसा हैं।
मेरी अमावस भरी ज़िंदगी में दोबारा कभी सावन नहीं बरसा है।।

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1 APR 2023 AT 19:54

//तलाश//
हर किसी के चेहरे में मुझे उसकी ही तलाश है।
बुझ चुकी है जो शमाँ उसमें उजाले की आस है।।

खुशनुमा समंदर है मेरे चारों ओर हसीन नमकीन।
ना जाने फिर भी क्यों मिटती नहीं मेरी प्यास है।।

जिकर भी आता तो चेहरे पर आ जाती मुस्कान।
इस कदर उससे जुड़ी मेरी यादों का एहसास है।।

साथ नहीं तो क्या हुआ मेरे अंतर्मन में वो ही वो।
इस निर्जीव काया में उसी के प्यार का स्वास है।।

कुछ मज़बूरी थी जो दूरी हुई हम दोनों के दरमियांँ।
अगले जन्म में जरुर मिलेंगे इतना तो विश्वास है।।

इश्क़ है नसीब का खेल हर किसी के हिस्से कहांँ।
अपने हाथ में तो दोस्त करना इमानदार प्रयास है।।

यूंँ तो खुशमिजाजी में ही रहता हूँ अक्सर गीतांश।
फिर भी न जाने क्यों आज शाम से दिल उदास है।।

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31 MAR 2023 AT 22:10

चेहरे पर चेहरा लगा रखा है आज कल हर शख़्स ने।
इंसान छोड़िए आईने को भी धोखा दे दिया अक्स ने।।

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27 MAR 2023 AT 21:02

//असल ज़िंदगी//
एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार।
वो सहला के मुझे सुला रही थी।।

मेरे अंतर्मन में बन गई थी उसकी मूरत गहरी,
वो मौसम की तरह मुझे भूला रही थी।।

जो कभी चेहरे के सिकन से हो जाती थी परेशान,
आज वही कितना मुझे रूला रही थी।।

जो कभी कहती थी सारी कायनात है तू मेरी,
आज वही गैर मुझे बुला रही थी।।

चैन-ओ-सुकूँ लूट लिया उस बेवफा़ ने मेरा,
वही किसी और को बाँहों में सुला रही थी।।

आज तसल्ली से बैठकर जब सोचा मैंने गीतांश,
शायद वो असली ज़िंदगी से मुझे मिला रही थी।।

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