गुल - अंदाम लब से यूँ अग़राज कर गए
कुछ दस्तियाब लम्हों को वो खास कर गए
चन्द शब ओ रोज़ गुज़रे औ' हमराज़ बन गए
फिर तारों का तालिब वो औ' महताब बन गए
इमरोज़ बहके जिस्म औ' सय्याद कर गए
उस बे-हया सी शाम को इक राज़ कर गए
फिर यूँ हुआ, कि क्यूँ हुआ ये इश्क़" कह गए
हम तन्हां थे उस आस्तां पर तन्हां रह गए
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