Farah Naseem   (©Farah Naseem)
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Joined 8 March 2020


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Joined 8 March 2020
3 HOURS AGO

बेटी चाहती है अपनी मां का अधूरा सपना पूरा करना,
बागों में चहचहाना और तितलियों सा उड़ना,
मां चाहती है बेटी को हर बंधन से मुक्त रखना,
उसके हाथों की रेखाओं को सहेजना,
उसके हृदय को हर भय से मुक्त रखना,
सशक्त होना और आत्मनिर्भर बनना,
मां चाहती है बेटी को हर क्षण सुख से पूर्ण देखना,
मां चाहती है बेटी की सखी कलम को बनाना,
मां चाहती है बेटी के हांथ की लिखी कविता पढ़ना,
मां चाहती है बेटी की किसी कहानी का पात्र बनना,
मां चाहती है बेटी का किसी मंच पे व्याख्यान सुनना,
तालियों का गूंजना और फख्र अनुभव करना,
बेटी चाहती है मां की पुरानी तस्वीर को बदलना,
लंबी चोटी की जगह मां को बॉब कट में देखना,
बेटी चाहती है मां की रसोई को बदलना,
बेटी चाहती है मां का संपूर्ण विश्राम करना,
बेटी चाहती है मां के हांथ की लकीरों
को फिर से जीवित करना,
बेटी चाहती है मां की मुस्कान का
लंबी आयु तक जीवित रहना।
बेटी चाहती है...
मां चाहती है...

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17 MAY AT 15:23

मेरी खूबसूरती पे जो कसीदे तुम तहरीर करते हो,
क्या है अरमान तुम्हारे किन ख्वाबों में रंग
भरते हो,
बताओ क्यों लिखते हो तुम मेरे हर अंदाज़ पे,
कभी सुर्ख लब पे कभी उनकी प्यास पे,
कभी काले गेसू पे और उनपे जड़े
गजरे खास पे,
कभी मेरी समंदर समेटती आँखों पे,
कभी ये गुलाबी रुखसार पे,
सुराहीदार गर्दन भी तुम्हारी निगाह से
कहां बची है,
मेरे झुमके भी तुम्हारे रहबर है क्या?
मेरी कमर की लचक तुम को
दीवाना बना देती है...
इसका अंदाज़ा है मुझे,
मेरी पाज़ेब क्या तुम को हर मुलाकात
में घायल कर जाती है...?

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17 MAY AT 15:17

पहलू मैं बैठ के दामन में मेरे गिराह पे गिराह जो तुम लगाते रहे हो,
कहीं कोई नज़्म तहरीर की है क्या, जो अल्फाज़ ऐसे सुलगाते रहे हो।

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17 MAY AT 2:04

तुम्हारे आगोश में सिमट कर ही मेरी ये धड़कन और रफ्तार पाती है,
तुम को तो पता है मेरी रुह को तुम्हारी निगाह ऐसे बेइंतहा आज़माती है।।

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17 MAY AT 1:58

बेतकल्लुफ़ सी तुम्हारी उस निगाह ने जब से छुआ है मेरे जिस्म को,
तब से जाने क्यों नींद नहीं आती है इन गहरी सियाह अकेली रातों में...

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17 MAY AT 1:53

आखरी मुलाकात को तहरीर करना भी बेहद मुश्किल था,
तुम्हारा वो निगाह का लम्स मेरे चैन सुकून का कातिल था।

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17 MAY AT 1:36

इस ज़ुबान की तल्खी में भी अंदाज़ कुछ यूं होना चाहिए,
इस गुफ्तगू का हांसिल बस इस्लाह करना होना चाहिए।।

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17 MAY AT 1:33

तुम्हारी एक झलक बरहम का वसीला बन गई,
नींदें छीन के बेचैनी बस हर लम्हें में छोड़ गई।।

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17 MAY AT 1:30

ये मोहब्बत और एक तुम्हारी मौजूदगी बरहम का ज़रिया बनी रही,
कभी इस करवट कभी उस करवट मेरी ज़िंदगी सवालों से घिरी रही।।

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17 MAY AT 1:27

इस सादगी की क़ीमत बहुत हम ने चुकाई है,
सारी उम्र बस यूं फिसलती रेत सी गवाई है।।

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