वो लम्हें, वो बातें, वो हमारा मिलना, इनको मोहब्बत नही बकवास कह दूँगी
वो अनकहे से मेरे ज़ज़्बात जो आज भी दफ़्न है तुम्हारी यादों में, मैं उनको मज़ाक कह दूँगी।।
ये हिचकियाँ जाती नही है, क्या तुम याद कर रहे हो मुझे?
इस बेवफाई के मंज़र में डूबी, मैं इन हिचकियों को भी इत्तेफाक कह दूँगी।।
मैंने भी बहुत ईज़ाद की उस आग की, जो तुम्हारी यादों को जला सके
वो जल तो नही पाई, फिर भी मैं उन्हे राख कह दूँगी।।
और पूछते हैं लोग, मोहब्बत का सितम ढाकर तुम्हे मिला क्या है "आरज़ू"
मैं उनके इस सवाल का जवाब, सिर्फ एक शब्द में ख़ाक कह दूँगी।।
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