भय अच्छा, अज्ञानता अच्छी, कमज़ोरी का एहसास अच्छा, दुःख अच्छा, रोना अच्छा…. और अगर आप इन सारी चीजों के प्रति जागरूक हैं तो वो सर्वोपरि । जीवन को उसकी व्यापकता में जियें…. रोज़ जियें… जागरूक बनें… ख़ुश रहें
दो अक्श मेरे ....ख़ुद ही लड़ पड़े ... जब मेरे अतीत के अक्श ने आज के अक्श को पहचानने से इंकार कर दिया l और एक “मैं” हूँ कि ..... इन दोनों ही के वजूद पर मुस्कराई और आगे बढ़ गई ll
वक़्त उसे भुला रहा है धीरे धीरे। ख़ुद अपने बनाये निशाँ मिटा रहा है धीरे -धीरे ॥ किसी की बिसात कहाँ कि वो मुझको मात दे । वक़्त का पहिया ही है जो मुझको घुमा रहा है धीरे धीरे॥ ग़ुरबत…..शोहरत …..नफ़रत ….मुहब्बत तौबा -तौबा । क्या जाने कौन कौन से जज़्बात सिखा रहा है …. मगर धीरे धीरे॥