Dr.Rajnish Kumar   (Raj4ever)
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Joined 1 September 2018


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23 DEC 2021 AT 23:08

लिखना सरल तो नही,
महज़ तत्क्षण, सहज है
घटनाओं के फलस्वरूप
केवल वैचारिक उपज है
मात्र साधारण प्रतिक्रिया,
प्रक्रिया परंतु असहज है
निःसंदेह पुरज़ोर प्रयास है
अभिव्यक्ति को दर्शाने का
अनकही कोई आवाज है
समझने के परे, समझ है
लिखना सरल तो नही
महज़ तत्क्षण, सहज है

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22 DEC 2021 AT 15:29

ज़िन्दगी आज फिर, मुझसे इक और सौदा कर
मेरा ख़्वाब लेकर, तू उसकी ख्वाहिश अदा कर

बख़्श हौसला उनको, जिनकी उम्मीद है कायम
ये ज़ख्म सकूँ है मेरा, बेसबब न इनकी दवा कर

प्यास, इश्क़,अमल सब रूह तलक उतर गया है
जलने को क्या है बाकी, चाहे जितनी हवा कर

शक्लोसूरत से है,यहाँ बुतों के दरम्यां रिश्ते,"राज"
कर रहम ज़रा, अब रूह को रूह का हमनवां कर

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21 DEC 2021 AT 23:12

ज़रा-ज़रा मैं हर रोज़ ही मरता रहा
सितम हर एक, बर्दाश्त करता रहा
हाय ! कभी रब में महबूब ना देखा
महबूब को ही, खुदा समझता रहा

झूठा वो नाम, उम्र भर जपता रहा
भूला राह-ए-मंज़िल, भटकता रहा
हरि बिन कौन बना आसरा,"राज"
जाने किसके पैरों में ,झुकता रहा !

Dr.Rajnish kumar

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18 DEC 2021 AT 23:11

तिल-तिल कर, मरदा रेहा
ज़ुल्म ,हर इक जरदा रेहा
हाय रब नु सजन न जान्या
सजना विच रब, लब्दा रेहा

चूठा ओह नाम जपदा रेहा
जाने कौन, लड़ फड़दा रेहा
मालिक बिन कोई ना,"राज"
होर ही पैरां, सिर तरदा रेहा

Dr.Rajnish kumar

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11 OCT 2021 AT 12:50

खुद ही, खुद की, ज़मानत करवाई है
वरना चाहतों की निज़ामत, दुहाई है

ज़हन ने इश्क़ समझा बस इक बुत को
कण-कण में नायाब अमानत समाई है

हर छह से इश्क़ जिसे, वही फ़रिश्ता है
उन्ही की बदौलत, सलामत अच्छाई है

शानो-शौकत कब तलक है, बरकरार
आख़िर इसकी ही क़यामत परछाईं है

तालीम ने तो जाहिल ही रखा, तां उम्र
बे-इल्म हुआ "राज" ज़ेहानत आई है

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13 SEP 2021 AT 14:19

आहें बेअसर, दुहाई बेकार जाती है
हर उम्मीद, तजुर्बे से हार जाती है

मोहताज, इतना ना हो कोई कभी
बिन तेरे, ये ज़िंदगी बेज़ार जाती है

देखा था ख़्वाब, जो फूलों से भरा
हसरतें वही, फ़क़त ख़ार खाती है

बेफिक्री हर दफ़े चुभी है दिल को
मगर निगाहें वहीं हर बार जाती है

कैसी गुज़र, हो रही बसर ,"राज"
साँसे अश्कों सी ज़ार ज़ार जाती है

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5 AUG 2021 AT 13:08

मिट गया आशियाँ, उजड़ गयी दुनिया
दिल ने बसा लिया, फिर से नया जहाँ

यादों की भूल-भुलैया,
आँखे चाहे हुई दरिया
यकीं मानो, कसम से
संग जीने का है ज़रिया

हो जाते कैसे फ़नाह, बाकी थे इम्तिहाँ
दिल ने बसा लिया, फिर से नया जहाँ

वही लम्हों का ख़ज़ाना है
रोज़ाना उन्हें ही बिताना है
यकीं मानो, कसम से
ये भ्रम, सच से सुहाना है

नाकबूल अर्ज़िया, रंग कुछ लाई दुआ
दिल ने बसा लिया, फिर से नया जहाँ

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8 JUL 2021 AT 15:57

कितना सहज है, आदत का लगना
चाय, नशा, चाहे किसी का मिलना
अबोध, अंजान, निष्क्रिय रहकर भी
नियमित, मुकर्रर खुराक मिले सही

बहुत असहज है, आदत का छूटना
आसान है, किसी सबक को भूलना
बा-होश जो बाँधा नही, छुड़ाये कैसे
सीखा ही नही कभी,वो भुलायें कैसे

दीदार, आवाज़ , पुकारना, हँसना
अर्सा बीता, तुमसे हुआ था मिलना
लेकिन आज भी , आदत गयी नही
दिल ने की थी, सहोब्बत गयी नही

सहज है किसी के लिए भुला देना
नियति किसी की, तसव्वुर में रहना
कितना सहज है, आदत का लगना
बहुत असहज है, आदत का छूटना

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5 JUL 2021 AT 12:48

ज़िंदगी बता ,क्या तेरी निशानी है
महज़, दौड़ते खूँ की ही रवानी है

रूह को सकूँ मिले, ऐसा भी हो
बेमन ही यूँ, उम्र सारी बितानी है

अपनी, अब मुझको लगती नही
जी रहा हूँ, फिरभी तू अंजानी है

गुनह हो तो, सज़ा हो इक जैसी
रंगीनियां, कहीं गम, बईमानी है

रौंदकर बढ़ जाना तो बख्शा नही
यकीं रखना किसी पर नादानी है

दैरो-हरम में ढूँढा चैन जो,"राज"
अजब तकरार है देखी, हैरानी है

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2 JUL 2021 AT 1:16

हुआ इल्म सब सहने के बाद
तमाम ख़्वाब, दहने के बाद

चमक आँखों की, तुमसे ही
है नमी, अश्क़ बहने के बाद

बड़ी सादगी से, हाल है पूछा
हूँ ख़ामोश, तेरे कहने के बाद

अपनेपन का दम जो भरते थे
मिलते नही ,घर ढहने के बाद

हो गया क़त्ल, वो शख्स शायद
कुछ बरस, तुम में रहने के बाद

Dr. Rajnish kumar

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