Dr. CA Sunil Sharma 'सरल'  
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Joined 13 July 2021


Joined 13 July 2021

छोटे से लम्हों में, अचानक मिल जाती है बड़ी सी खुशी...
लम्हा लम्हा करके, जिंदगी से फिर जुड़ जाती है,
वो थोड़ी खोई हुई, थोड़ी उड़ी उड़ी सी खुशी...
बड़े दिनों बाद, मैने पहनी वो एक शर्ट,
जिससे जुड़ी थी, हमारी कुछ हसीन यादें,
याद आ गये, वो बेशकीमती, चुराए हुए,
कुछ हसीन पल, और...
और अचानक जैसे सामने आ खड़ी हुई,
वो उन पलों से जुड़ी - जुड़ी सी खुशी...
छोटे से लम्हों में, अचानक मिल जाती है बड़ी सी खुशी...
परसों ही तो... जब हमने, था चुराया एक पल,
थे तुम हम, और थोड़ी चुहल,
कुछ आशिकाना माहौल, कुछ पसन्दीदा खाना
बज रहा था जाना पहचाना, एक तराना पुराना,
और फिर, कुछ पल को वापिस लौटी,
जैसे जाते जाते, जैसे फिर थी वो मुड़ी सी खुशी...
छोटे से लम्हों में, अचानक मिल जाती है बड़ी सी खुशी...
बस, यूं ही तेरे नाम थी
बदलते मौसम की वो ढलती सी दुपहर, तमाम थी,
फिर थोड़े बीते वक्त के किस्से,
कुछ शिकायतों के नाराज हिस्से,
कुछ कही, कुछ अनकही,
बातें सुख की दुख की, निकले भूत भविष्य, गलत सही,
पर, इन नन्ही नन्ही मुलाकातों में,
हमारी तुम्हारी नटखट बातों में,
अब, उन हसीन लम्हो की यादों में सिमटी मिल जाती है, थोड़ी बड़ी सी खुशी...
छोटी सी बात में, अचानक मिल जाती है बड़ी सी खुशी...
© डॉ सीए सुनील शर्मा - 3 अप्रैल 2024

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न मुझ से, बात करती वो, न उस से मैं, हूँ बतियाता,
न मुझको बुलाती वो, ना मैं अब मिलने को हूँ जाता.
मगर रक्खो, किसी से भी, सच्चे दिल का, गर नाता,
न मिलने, बात करने से, वो रिश्ता, मर नही जाता.
© डॉ. सीए. सुनील शर्मा - 29 मार्च 2024

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रंगबिरंगे चेहरे हैं, छाया धमाल मस्ती का शोर है,
नभ में उड़ता गुलाल, रंगों की बौछार हर और है.
होली आई लेकर, स्नेह, प्यार और मिलन के रंग,
ये उत्सव तो, वसंत व नववर्ष की सतरंगी भोर है.
© डॉ. सीए. सुनील शर्मा - 25 मार्च 2024

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महक  उसमें से  अब, थोड़ी  कम  आने  लगी है,
गुलदान  में  सजी  रजनीगंधा,  मुरझाने  लगी है.
बहार, इश्क, दवा, इंसां, सबकी इक उम्र होती है,
बालों  में  आती  सफेदी, मुझे  समझाने  लगी है.

©डॉ सीए सुनील शर्मा - 13 मार्च 2024

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कांटे से बिंधी थी, वो मासूम शबनम, भूलते नही हैं,
घाव तो भर गया, पर दर्द को जखम, भूलते नही हैं.

झूठी तोहमतें, झूठी बातें और लगाये, इल्जाम झूठे,
भूल जाना, तो चाहें मगर ये सब हम, भूलते नही है.

क्या क्या, नही खोया एक तुझको, पाने की खातिर,
तेरे खोने पे, सब कुछ खो देने का गम, भूलते नही है.

वो, दिल बहलाने का था सामां, झूठी तेरी वादागोई,
हैं सच्चे जो लोग, वो खाई हुई कसम, भूलते नही है.

लफ्जों में, बयां हो कैसे, उन मक्कारियों का हिसाब,
पहले करेंगे वार, फिर लगाना मरहम, भूलते नही है.

मौजों सा है मिजाज, दूर जाकर फिर लौट आने का,
काम होता तो, हैं वो करते याद बेशरम, भूलते नही है.

अब लौटने की, सोचना भी मत, न बुलाएंगे कभी भी,
रूह पे लगे जो दाग, चाहकर भी सनम, भूलते नही है.

© डॉ. सीए. सुनील शर्मा - 9 मार्च 2024

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कांटे से बिंधी थी, वो मासूम शबनम, भूलते नही हैं,
घाव तो भर गया, पर दर्द को जखम, भूलते नही हैं,
झूठी तोहमतें, झूठी बातें और लगाये, इल्जाम झूठे,
भूल जाना तो चाहें, मगर ये सब हम, भूलते नही है.

© डॉ. सीए. सुनील शर्मा - 9 मार्च 2024

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आज खिले गुंचों में खुशबू, शायद कुछ कम है,
शबनम भी आज जरा कुछ, ज्यादा नम-नम है.
तेरे बिगड़े तेवर औ जुबां की तल्खी, बता रही है,
आज गुलशन का हाल ए मौसम, ज्यादा गरम है.
© डॉ. सीए. सुनील शर्मा - 26 फरवरी 2024

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जब कोई मिलने घुमाने के, बहाने ढूंढता है,
हंसाने को तुम्हें, नए नए फ़साने ढूंढता है,
खिलाने पिलाने के नित नए ठिकाने ढूंढता है,
तुम्हे सुनाने को कितने, पुराने तराने ढूंढता है,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!

किसी लंबी सड़क पर, ड्राइव पे जाते,
पुराने गीत गुन - गुनाकर, बेसुरे से गाते,
किसी बचपन के किस्से पे, ठहाके लगाते,
थे जहां साथ गुजरे वहां फिर, दुबारा जाते,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!

सावन में उन्ही पहाड़ों, घाटों पर जाकर,
बारिश में उन, बरसाती झरनों में नहाकर,
आधे भीगे गर्म भुट्टे के, दानो को चबाकर,
सम्भलते जब अचानक, ठोकर सी खाकर,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!

झील किनारे बैठते हो जब, अकेले जाकर,
सूरज भी सो जाता होगा, लालिमा बिछाकर,
कानो में हवाएं, फुसफुसायें, सर - सरा कर,
मेरे बारे में पूछती, मछलियाँ नजदीक आकर,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!

जब, कोई तुम्हारे चेहरे को, तारीफ से निहारे,
हसीं सा, एक नया नाम ले के, प्यार से पुकारे,
मिलना हो तुमसे तो, छोड़ दे बाकी काम सारे,
लिखे शायरी, दिल के जज्बात, पन्नो पे उतारे,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!
हमारी जुदाई की दिल मे फरियाद तो, आती ही होगी...!!
© डॉ. सीए. सुनील शर्मा - 25 फरवरी 2024

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अरसे बाद,
सुबह चिड़ियाँ चहचहाई हैं,
क्षितिज की बदलियां
जैसे पलाश की कलियों से
रंग चुरा लायीं हैं...!
हवा में चरपराहट है,
सूरज
जैसे संतरे की परछाई है...!
पेड़ों पर खिले फूलों पर
झोंकों का सुर है ऐसे,
जैसे किसी नवयौवना ने चूड़ीयां खनकाई है...!
रंग बिरंगे
ताज़े गेंदे खिल रहे हैं,
दूब के पत्तों में
अभी भी थोड़ी ओस समाई है...!
उठ के आँखें खोलो मेरे मीत,
नए दिन, नयी खुशबु ने
नयी उम्मीद जगाई है...!
हवा में ताजगी है,
ठंड कम है,
वसंत ऋतू आई है...!
मिल लो प्यार से अपने सजन से,
सब प्रेमियों को,
वसन्त पंचमी और
वैलेंटाइन की बधाई है...!!
© डॉ सीए सुनील शर्मा - 14 फरवरी

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अल्हड जैसी कोई कली हो,
हाव भाव में गौरव, लेकिन प्यार भरी बदली हो,
मैं देख रहा हूँ तुमको, तुम मंदिर से निकली हो।

तुम्हारा चेहरा दमक रहा है,
लाल यह टीका चमक रहा है,
फूल हाथ में, फूल बाल में,
दैविक छवि है चाल ढाल में,
घनी लटें, यूँ छुपी हैं पल्लू में, चुनरी में लिपटी हो,
मैं देख रहा हूँ तुमको, तुम मंदिर से निकली हो।

अधरों पर मुस्कान खिली है,
चमकीली आखों में बिजली है,
गालों पर ये ओज है उमड़ा,
देवी, जैसा ये सुन्दर मुखड़ा,
मादक यौवन ऐसे जैसे, सुन्दर सी एक तितली हो,
मैं देख रहा हूँ तुमको, तुम मंदिर से निकली हो।

उर में कितना प्यार भरा है,
छवि में एक विश्वास भरा है,
हाथ में प्रसाद, पूजा की थाली,
अति सुन्दर, तुम नारी मतवाली,
सोच रहा हूँ, मैं खुशनसीब हूँ, मुझको मिली हो,
मैं देख रहा हूँ तुमको, तुम मंदिर से निकली हो।
© सुनील शर्मा - 5 फरवरी 2013.

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