जब कोई मिलने घुमाने के, बहाने ढूंढता है,
हंसाने को तुम्हें, नए नए फ़साने ढूंढता है,
खिलाने पिलाने के नित नए ठिकाने ढूंढता है,
तुम्हे सुनाने को कितने, पुराने तराने ढूंढता है,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!
किसी लंबी सड़क पर, ड्राइव पे जाते,
पुराने गीत गुन - गुनाकर, बेसुरे से गाते,
किसी बचपन के किस्से पे, ठहाके लगाते,
थे जहां साथ गुजरे वहां फिर, दुबारा जाते,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!
सावन में उन्ही पहाड़ों, घाटों पर जाकर,
बारिश में उन, बरसाती झरनों में नहाकर,
आधे भीगे गर्म भुट्टे के, दानो को चबाकर,
सम्भलते जब अचानक, ठोकर सी खाकर,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!
झील किनारे बैठते हो जब, अकेले जाकर,
सूरज भी सो जाता होगा, लालिमा बिछाकर,
कानो में हवाएं, फुसफुसायें, सर - सरा कर,
मेरे बारे में पूछती, मछलियाँ नजदीक आकर,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!
जब, कोई तुम्हारे चेहरे को, तारीफ से निहारे,
हसीं सा, एक नया नाम ले के, प्यार से पुकारे,
मिलना हो तुमसे तो, छोड़ दे बाकी काम सारे,
लिखे शायरी, दिल के जज्बात, पन्नो पे उतारे,
तब कहीं थोड़ी सी मेरी भी, याद तो, आती ही होगी...!
हमारी जुदाई की दिल मे फरियाद तो, आती ही होगी...!!
© डॉ. सीए. सुनील शर्मा - 25 फरवरी 2024
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