वक़्त की साजिश कहूँ , कुदरत का खेल कहूँ या कहूँ इसे बदनसीबी ,
अब तो मानो जैसे तुमने मुझे तुम्हारे ख्यालों में भी मिलने से इंकार किया है ।
वो कहते थे ना तुम की तुम्हे समंदर के किनारे टहलना बेहद पसंद है ,
तुम्हारे दीदार की आस में मैंने अश्कों से समंदर बनाकर तुम्हारा इंतजार किया है ।
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