Dixit Jain   (Dixit Jain)
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Joined 30 May 2020


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Joined 30 May 2020
17 MAY 2022 AT 1:16

पिंजरे से निकली चिर (चिड़िया)
भरने एक लंबी उड़ान को,
पीछे पड़ी एक चील
दबोचने उस नन्ही जान को,
लंबी थी किस्मत की लकीर
जो छोड़ आई उस शैतान को,
खरोंचों से भरा शरीर
मगर बचा लायी वो अपनी साँस को,
दिल पे चोट है गंभीर
और दहशत देख के उस आसमान को,
अब महफूज़ लगे ये ज़ंजीर
मानो पिंजरा ही जैसे उसका मकान हो,
रब तू ही चला अब कोई तरक़ीब
की मिल जाये उसे मुकाम वो,
फिर हो अपने परों पे उसे यकीन
और एक लंबी उड़ान को वो तैयार हो,
तोड़ दे वो सारी जंजीर
फिरसे देख उस खुलें आसमान को।

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16 FEB 2021 AT 0:19

होके थोड़ा बेहाल और कर्जदार,
छोडे सारे रिश्ते और यार-
अपने गांव के वो चौराहों पे।

फ़र्ज़ का बोझा अपने कंधो पे डाल,
पाने कुछ पैसा और सम्मान-
निकल पड़ा था अंजानी राहों पे।

लगे जिन्दान है ये तन्हा हाल,
पासबान अब अश्क है-
इन बेदारी सी आंखों पे।

है सवाल उसके मन में बेशुमार मगर,
भूल वो सारे मोह राग-
खो गया फलक के हसीन नजारों में।

कर लिया स्वीकार अब ये मुकाम,
और सो गया वो जाके-
उस सुहाने से चाँद की बाहों में।

बेदारी- awake, sleepless
जिन्दान- cage, jail
पासबान- watchman

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8 JUL 2020 AT 22:00

जाना ही है तो एक बार मे जाइये,
बार बार वापस आने को छोड़ो ना।
हमे अभी और भी दील की जरूरत है ,
बार बार यूँ उसे बेरेहमी तोड़ो ना।

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29 JUN 2020 AT 16:25

जी, अब ये हुस्न है जो इश्क़ का भाव तोलता है,
दिल का तो इस बाजार में पलड़ा हल्का हो गया।
अब तो यहां खुबसुरती का सिक्का बोलता है,
अच्छाई का नोट तो कबका रद्द हो गया।

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28 JUN 2020 AT 20:19

You seems to be close but you ain't, why?
I am that moon and you're like stars in the sky.

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26 JUN 2020 AT 22:10

ना है मुझमे इतनी भी रोशनी,
मगर तुम्हारा ही रूप हूँ-
मुझे स्वीकार कर लो।

माना अब नही बची कोई भी दिल्लगी,
मगर तुम्हारी ही चाहत हूँ-
मुझे स्वीकार कर लो।

है थोड़ी तन्हा ,थोड़ी डरी सी,
मगर तुम्हारी ही आहट हूँ-
मुझे स्वीकार कर लो।

है वैसे तो काफी मुझमे भी कमी,
मगर तुम्हारा ही स्वरूप हूँ-
मुझे स्वीकार कर लो।

आईना नही दिखता तस्वीर जूठी,
मैं तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब हूँ-
मुझे स्वीकार कर लो।

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24 JUN 2020 AT 1:56

"क्या कहेंगें लोग!!"-
क्यों ये ख्याल तुम टालते नही,
है हुनर अगर तुम में-
क्यों तुम आजमाते नही,
रखो ख़ुद पर भरोसा-
क्यों खुदको पहचानते नही,
तुम जानते तो हो-
क्यों मगर ये मानते नही??

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23 JUN 2020 AT 0:52

राहों का नही कोई पता,
आंखें मूंद मैं चल पड़ा,
मंजिल तो है लापता,
अब आफताब भी ढल पड़ा,

काफिले के साये में था,
थोड़ा अनकहा, थोड़ा अनसुना।
उस भीड़ में बस एक परछाई था,
थोड़ा अनदेखा, थोड़ा अनसुना।

ढूंढता हर शख्स में था,
कुर्बत का एहसास नशीला।
उन्स मेरे हर अंश में था,
मगर राबता कही भी न मिला।

बाहें तो था खड़ा फेलाए,
ना थी शायद नज़दीकियां।
हाथों को था खड़ा बढ़ाए,
थी शायद काफी दूरियां।

फिर होके थोड़ा खुदगर्ज़,
हमने भी हाथों को मोड़ लिया।
ढूंढ़लिया मेने अपना हर मर्ज,
खुद ही को सीने से जोड़ दीया।

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22 JUN 2020 AT 1:38

बचपन में उनसे डरता था,
और जवानी में झगड़ता था,
तेज़ भागती इस दुनिया मे -
मेरा ख्याल जो रखता है।
ख़्वाइशों को पाने के पीछे -
ये मैंने नजरअंदाज किया,
कोई था जो अपने ख्वाबो को भूल -
मेरी ज़िद को आगे रखता था।
मेरे सपनों को सच करने खातिर -
वो दिन और रात संघर्ष किया।
मैं जंग खयालात की लड़ा जिससे,
वो मुझ पर जान न्योछावर करता था,
जवानी भर ये समझता रहा -
"वो इंसान मुझे कभी ना समझता था"
आज बुढ़ापे में हकीक़त जानि -
वो बाप क्या महसूस करता था।

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21 JUN 2020 AT 10:31

It's not easy to show or to express,
But not showing that feels like a regret,
Didn't know, how it could be that tough,
Just to say "Dad, I Love You. You've done more than enough".

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