*संघर्ष*
उड़ान भर इतनी, कि गगन छोटा पड़ जाए।
कर परिश्रम इतना, कि मंजिल खुद- ब- खुद मिल जाए।।
चलता रह राहों में, कि निशान तेरे ही बन जाए।
बाकी निशा ना रहे किसी का, सब मंजिल में तेरी ही जाए।।
देखें तेरी मेहनत, और सब देखते ही रह जाए ।
उड़ान भर इतनी, कि गगन छोटा पड़ जाए।।
राहें अकेले बनाना है मुश्किल।
पर राह ऐसी बना की फिर कदम ना लड़खाए।।
मंजिल है तेरी तो, हैं सब तेरे है इस जहां में।
करना न ऐसी गलती, कि तू गुमनाम हो जाए।।
खुशी तेरी भी हो जिसमें, वो मंजिल तेरी हो जाए।
है दुआ दिवाकर की, कि हर दुआ तेरी कुबूल हो जाए।।
अब तेरी हर आरजू , तेरी ख़ुशी बन जाए।
उड़ान इतनी भर, कि गगन छोटा पड़ जाए।।
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