क्या मेरी कविता सुनोगे तुम.. कुछ एहसास है उनमें, क्या समझोगे तुम.. क्या मेरी कविता सुनोगे तुम.. कुछ रंग हैं उनमे, क्या देखोगे तुम.. कह रही मन की अनेकों बातें कुछ अनसुनी धड़कन हैं उनमे, उन्हें आवाज़ देकर क्या बोल दोगे तुम, क्या मेरी कविता सुनोगे तुम.. कुछ एहसास है उनमें, क्या समझोगे तुम..
यही तो मेरा सत्य है जो असत्य सा ही सत्य हैं फ़ूलों की तरह जो थी खिली, अंगारों पर चलना था मगर रेशम की छाँव सर पर थी तपिश सहना था मगर रंगों के सपनों में थी खेली सपना तो टूटना था मगर यही तो मेरा सत्य है जो असत्य सा ही सत्य है...
उन पत्तों के बीच छुपे अंधियारे से, झाँकती है एक जोड़ी मधुर संगीत की, सुबह सुबह चहकती हुई डालियों पर, कभी दाना ढूँढती हुई दीवारों पर, एक छोटी सी पर रंगीली सी.. गाती बहुत सुरीली सी.. इतराती हुई प्यारी सी... चौकन्नी होती नन्ही सी.. चिरैया है ये छोटी सी..
I do it for myself, So that I move on.. But yeah folk.. I would never forget that.. So, the hurt part wont repeat.. When I chose to forgive, I do it for myself, So that I grow more, But yeah dear.. I will observe your each step.. As the trust was murdered along...
We learn MORE in our journey, than destination... Experiences are the result of these journeys.. And Realisation of Experience is the result of Destination... So, keep moving for experiences and work for their realisations...