मेरी नजर में कुछ हो न हो मगर हर वो स्त्री स्वयं मे अनमोल रत्न है घर को मंदिर जो है समझे परिवार में बसते जिसके प्राण है विचार जिसके गंगा जैसी घर –आंगन में नकारात्मकता नष्ट करने वाली तुलसी के जो समान है सीता जैसी पवित्र जो है टेरेसा जिसमे कल्याण भाव हो प्रेम–भाव के जिसके दिल में बहती धारा हो वो स्त्री स्वयं मे अनमोल रत्न है अनमोल रत्न है
कौन जाने पीड़ा मोरी चुप हूं तो दुख ना कोई व्यक्त करू तो ढोंग है कोई कौन जाने पीड़ा मोरी अनंत आकाश में विलीन होना चाहूंगी मगर उससे पहले कर्म से अपने हजारों दिलों को जीतना चाहूंगी यम आए तो कह ले जाए क्या खूब निभाई तूने कर्म ये तेरी।
जिसमे हम पुष्प की भांति,सजे हैं नव–निर्माण होता है, खिलते हैं, फलते हैं और फिर बिखर कर सुख जाते हैं लेकिन" सुगंधित पुष्प की भांति,उन्हें ही याद किया जाता है, जिनके किरदार में " खासियत" होती है।
कुछ यूं सलामत रहे बचपन में लड़ते थे, बुढ़ापे में भी लड़े 🤭 हमेशा की तरह गप्पे– शप्पे करने जब हम लगे समय का पता ही ना चले मेरा दोस्त और मेरी दोस्ती हमेशा सलामत रहे!