Dipakshi Ojha   (Khushi)
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Joined 19 April 2021


Joined 19 April 2021
2 MAR AT 20:40

उस दौर की क्या बात करे,जो दौर हमारा था।
की उस दौर की क्या बात करे, जो दौर हमारा था।
एक घर ही नहीं,बल्कि पुरा गांव हमारा था।
यू हंसते –खेलते बीत गए, वो वक्त हमारे बचपन के।
वो वक्त अब न आयेंगे,जो वक्त थे हमारे सोने से।
वो गलियां भी अब सुनी हो गई,
न जाने कहा वो सारी खुशियां खो गई।
हर शाम जो बीती दोस्तों के संग,वो भी क्या खूबसूरत
नजारा था।
उस दौर की क्या बात करे जो दौर हमारा था।


–Dipakshi

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10 JAN AT 19:08

कुछ लफ्ज़ लिखें थे तेरी याद में,
कुछ अल्फाज़ मेरे मशहूर हो गए।
कुछ यूं संवारा था तेरे हुस्न को हमने,
की तुम आम से कोहेनुर हो गए।

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30 DEC 2023 AT 0:33

कुछ वक्त तन्हा थे गुज़रे,
कुछ तन्हाई में गुजर गए हम।
ये वक्त अब खुशी का है,
और इस वक्त में तुम्हारे है हम।

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23 DEC 2023 AT 10:48

हर रिश्ता अनोखा होता है, लेकिन माँ के बाद

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19 APR 2023 AT 15:12

जैसे- जैसे इंसान बडा होते जाता है,
वैसे-वैसे उसके रिस्ते कमजोर होते जाता है।

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19 APR 2023 AT 15:08

मत समझाना किसी को यारो की तुम कैसे हो,क्या सोचते हो।
जो अपना होगा वो तुम्हे खुद समझ जायेगा।

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8 FEB 2023 AT 20:47

डर डर के जिये तो क्या जिये ,
बैखोफ रहो तो कुछ बात कहे।
मर-मर के जिये तो क्या जिये,
खुशियों में जियो ते कुछ बात कहे।
रो-रो कर जिये ते क्या जिये,
महफिल में जियो तो कुछ बात कहे।
पतझड़ मे जिये तो क्या जिये,
फुलों में जियो ते कुछ बात कहे।

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27 JAN 2023 AT 9:38

ना कश्मीर,ना मनाली
ना गोआ,ना बंगाली।
हर जगह से लौट आयेंगे।
इश्क का रंग कुछ ऐसा लगा मोहन,
आपसे मिलने हम वृंदावन आयेंगे।

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9 OCT 2022 AT 23:59

हवाओं की सरसराहट कानों में गुंज रही थी।
जैसे चाँद की चाँदनी आँखो को चुम रही थी।
एक पल को लगा नज़रे ही ना झुकाउं आसमां की ओर से।
जैसे जुल्फे उड रही थी हवाओं के सोर से ।
पर कुछ पल बाद याद आया की रात और गहरी हो रही थी ।
हवाओं की सरसराहट कानों में गुंज रही थी।

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24 SEP 2022 AT 11:01

हवाये नम थी,आसमां मे थोडे बादल छाये हुयेे थे।
ये बरफ पड़ी उनके छत पै जब से,एक आस लगाये हुये थे।
की कभी तो निकलेगी वे अपने घर से,
हम बाहर आग जलाये हुये थे।
क्या बताऊ दिल बेहाल था अपनी और जेब में पैसे भी न थे।
पर बस उसकी एक झलक के लिये हम मनाली आये हुये थे।

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