Dilip Chakrdhari   (Dilip_chakrdhari)
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D.o.b.- 17-Dec-1994
Joined 10 May 2020


D.o.b.- 17-Dec-1994
Joined 10 May 2020
22 MAR 2021 AT 2:34

कई दरमियां, भूलने को।
की कोशिशे, बेवफा तुमको।
हर सपने तेरे, किये पूरे।
फिर दी क्यूं सजा, तुमने मुझको

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9 MAR 2021 AT 23:43

Dhudhne chala tha mai kajrare nain
Jise dekha dhati nashe kayanat me
Kitno ne loot lia tha mera chain
Par jugnu the madrate unke sath me
Jis noor ki thi talas mujhe
Lga wo kishmat na mere hath me

Ek sham talak mujhe jhalak chand ki
Wo noor dikhi mujhe mere hi ghar ke samne

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20 OCT 2020 AT 2:33

ऐ वक्त क्यूँ इतना बेरहम,
सपनें दिखा छीन लेता हैं।
जिसके कंधों में सारा बोझ,
उसे दूर अपनों से कर देता हैं।
अगर तेरे दर पे भी,
कमी अच्छें इंसानों की।
तू खुद इतना काबिल,
क्यूँ अपनों को ले जाता हैं।
ऐ वक्त क्यूँ इतना बेरहम,
सपनें दिखा छीन लेता हैं।

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15 OCT 2020 AT 22:47

इस कदर उसकी ख्यालों में ना बिखर ऐ आशिक,
उसकी बेवफाई से तो पूरी दुनिया है वाकिफ।

जिसे रही ना साथ किये वादों की अहमियत,
क्यूँ याद किये फिरता उस चेहरे की मासूमियत।

उजडे़ वन मे बहार की तू आश ना कर,
क्या मिलेगा तुझे अब उसे वापस पाकर।

इस कदर उसकी ख्यालों में ना बिखर ऐ आशिक,
उसकी बेवफाई से तो पूरी दुनिया है वाकिफ।

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8 OCT 2020 AT 0:39

वो फिर ख़्वाबों में आएगी,
जब बैठूँ मैं चाँद की रौशनी में, मेरे खयालों में छा जाएगी।
किस्सा ये कभी ख़तम ना होगा, लगे आज रात भी लंबी होगी।
वैसे तो मैं हूं मुसाफ़िर, खुद उलझन में उलझा हूं,
कई रास्तों में खोने के बाद, उसके संग मैं सुलझा हूं।
इक आस लिये अपने मन में, की शाम सुहानी आयेगी,
जब बैठूं मैं चांद की रौशनी में, वो फ़िर ख़्वाबों में आएगी,
सुकुं दिला मेरे मन को, मेरे खयालों में छा जाएगी।
किस्सा ये कभी ख़तम ना होगा, बस रातें लंबी होती जाएंगी।

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2 OCT 2020 AT 20:40

मेरे रोज की भाग-दौड़ तो सूरज को पता होता है
पर दिल की बातों से सिर्फ चाँद रूबरु होता है।

मेरे रूह की छाँव संग तो सूरज भी चलता है,
पर मेरी ऊँची ख्वाहिशों से सिर्फ चाँद रुबरू होता है।

सूरज तो बस हरियाली उपवन की निहारता है,
लहरों की सैलाबों से बस चाँद रुबरू करता है।

दिन पेड़ की छाँव में तो राह देखते निकल जाता है,
पर हाल पूछनें मेरा मुझसे बस चाँद रोज आता है।

दिन भर करता रहता हँस कर बातें मैं तुमसे,
पर मेरे तन्हाई से तो बस चाँद रुबरू होता है।

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18 SEP 2020 AT 4:53

पता नहीं क्यूँ,
पर तुम्हें हर बात बताने को मन है करता।
तुम्हें अपना अहसास जताने को मन है करता।
रहूँ अगर मैं खुश कभी,
बस तुम्हीं से बाँटने को मन है करता।
गर हो दुःख कोई,
बस तुम्हारे साथ बैठने को मन है करता।
पता नहीं क्यूँ,
हर ख्वाब तुम संग सजानें को मन है करता।
तुम्हें बस अपना बनाने को मन है करता।
पता नहीं क्यूँ,
पर हर बार हूँ मैं तुमसे डरता।

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15 SEP 2020 AT 16:13

तख़य्यूल कहूँ या ख्वाब उसे
कभी दिल तो कभी एहसास में रहती
महताब सी उसकी आदत
पल भर मे छुप जाया करती
गीली मिट्टी की सोंधी खुशबूँ सी
धूप निकलते उड़ जाया करती
समुंदर की लहरों सी
मसलसल साहिल आ जाया करती
तख़य्यूल कहूँ या ख्वाब उसे
कभी दिल तो कभी एहसास में रहती

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13 SEP 2020 AT 23:40

अपने हुनर पर बडा़ ही गुरूर था,
मुझसे यागाना कोई नहीं।
किस्मत मुश्त मे लिये,
समुंदर की गहराई क्या;
आसमाँ की उरूज पर रहता था।
जिंदगी की इस दौड़ में,
खु़द कफी़ल हुआ करता था।
हुआ ना रंज का सामना,
खु़शियाँ जैसे दफ्तर ए गुल सा।
पर समय से बडा़ कोई शह-जो़र नहीं,
आज ज़मीं पर चलने से डरता हूँ।
पायाब में पाँव ना रखता हूँ,
किस्मत को दुआँ करता हूँ।
महदूद सा हो गया हूँ,
अग़्यार संग सर ए बज़्म मे रहता हूँ।
बस एक हसरत पुरी हो जाये,
एक आस की तसव्वूर करता हूँ।

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12 SEP 2020 AT 21:17

दस्तूर समाज का भी समझ ना आयें,
पहले रह-रह सपनें दिखाये,
फिर हमसे उम्मीदें लगाये,
पर जब उड़नें को पँख फैलायें,
दुनियाँ खराब कह घर को बिठायें।।

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