वो फिर ख़्वाबों में आएगी,
जब बैठूँ मैं चाँद की रौशनी में, मेरे खयालों में छा जाएगी।
किस्सा ये कभी ख़तम ना होगा, लगे आज रात भी लंबी होगी।
वैसे तो मैं हूं मुसाफ़िर, खुद उलझन में उलझा हूं,
कई रास्तों में खोने के बाद, उसके संग मैं सुलझा हूं।
इक आस लिये अपने मन में, की शाम सुहानी आयेगी,
जब बैठूं मैं चांद की रौशनी में, वो फ़िर ख़्वाबों में आएगी,
सुकुं दिला मेरे मन को, मेरे खयालों में छा जाएगी।
किस्सा ये कभी ख़तम ना होगा, बस रातें लंबी होती जाएंगी।
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