Diksha Bhardwaj   (Sameri...✍)
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Joined 7 August 2019


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17 APR 2020 AT 16:36

लम्बी सी रातें,
कुछ अधूरी सी बातें,
बेवजह रूठ जाना,
खुद से ही मान जाना,
कुछ अनसुलझे सवाल,
और जवाब का आना,
थोड़ी सी मायुसी,
कभी यूँ ही मुस्कुराना,
ख्वाबो का इन्तजार,
कभी नींद का ना आना,
बदस्तूर जारी हैं यूँ ही,
खुद से मिलना और मिलाना।।

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18 NOV 2021 AT 17:20

ज़िन्दगी मे "ज़िन्दगी" का साथ चाहती हैं,
पकड़े तो ना छोड़ें वो हाथ चाहती हैं,
कौन कहता हैं ज़िन्दगी सुहाना सफर हैं,
हर मोड़ तो ये इक नया इम्तिहान चाहती हैं।।

कोई दिखावे को गम जताता हैं,
कोई गम छुपाकर मुस्कुराता हैं,
कभी ढ़ूँढ़ना भी बशर को एक रँग में,
कितना मुश्किल हो जाता हैं।।

हर पल इक पन्ना जुड़ता हैं,
हर दिन कुछ धुँधला पड़ जाता हैं,
मिलना बिछ्ड़ना एक दस्तूर यहाँ,
बस "साथ" का वहम रह जाता हैं।।

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8 AUG 2021 AT 17:56

तेरी चाहत तेरी इबादत तेरा इस्तक़बाल कर रही हूँ ,
मै हर घड़ी तुझसे थोड़ा और प्यार कर रही हूँ ,
हाँ!! हर घड़ी तुझसे थोड़ा और प्यार कर रही हूँ !!

ये आँखो का चमकना और रूह का निखरना सब हैं तुझी से,
दिल पे था अब साँसो पे तेरा इख़्तियार कर रही हूँ !!
हाँ!! हर घड़ी तुझसे थोड़ा और प्यार कर रही हूँ !!

तूँ हमनवा तूँ हमदर्द तूँ हमराही इस सफ़र मे,
तुझ संग खुशी ओ गम का इज़हार कर रही हूँ,
हाँ!! हर घड़ी तुझसे थोड़ा और प्यार कर रही हूँ !!

वो शाम-ए-वस्ल अभी दूर है ओझल सी है इन आँखो से,
मगर मैं सिद्दत से उसी शाम का इंतजार कर रही हूँ ,
हाँ!! हर घड़ी तुझसे थोड़ा और प्यार कर रही हूँ !!

मालूम है तुझसे मिलना रास ना आएगा इस जमाने को,
मैं खुद को इताब-ए-जमाने को तैयार कर रही हूँ,
हाँ!! हर घड़ी तुझसे थोड़ा और प्यार कर रही हूँ !!

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1 AUG 2021 AT 11:22


we start......
talking with each other without any hesitation, sharing our good and bad experiences, feeling an emotional bond with each other and keeping faith even in stupid advice or ideas of each other😄..

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26 JUL 2021 AT 21:44

कुछ कहने को नही कुछ सुनने को नही,
हाँ,,,गलत तुम भी नही और हम भी नही,
सोहबत तिरी वो तमन्ना-ए-खाम सी,
मिरे अश्को से बही और गम भी नही।।

तूँ रहाँ हर घड़ी यूँ तो मिरी यादों मे, ख़्यालो मे,
हाँ!! क़ुर्बत मे नही, तो ख़्वाबो मे सही,
इश्क़ तुझसे, मुकम्मल ना हुआ बेशक,
रहें उल्फ़त के धागे, भले उलझे से सही।।

तिरा नाम ज़ेहन से मिटा दूँ, होगा हरगिज़ नही,
ज़िंदगी की शाम तलक़, उजाले यादों के सही,
मशिय्यत यही के आए वो वस्ल की शाम भी,
गर इस ज़िंदगी नही, तो उस ज़िंदगी सही।।
-Sameri✍

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26 JUL 2021 AT 0:21

पहचान हैं सभी रंगो की,
मगर बशर का रँग अनोखा हैं,
ना ही मालूम के सच क्या हैं,
ना ही मालूम क्या धोखा हैं!!

दुख पहुँचाना दुजो को,
यही बस उसकी आदत हैं,
ढोंग रचे फ़िर कुछ ऐसे,
के मानो यही सदाकत हैं!!

ईश्वर का नाम लबो पर हैं,
बगल मे खंजर रखता हैं,
गिराने को फ़िर औरो को,
तदबीरे सभी कर सकता हैं!!

दोगलापान रग रग मे हैं,
जुबां की मिठास कुछ नकली हैं,
लालच, इर्ष्या, द्वेष, कपट,
और बाकी सब असली हैं!!

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11 JUL 2021 AT 23:35

जिन्दगी उस रेत की तरह हैं जिसे
लाख कोशिश करे मुठ्ठी मे पकडे रखने की,
मगर वो फिसलती ही रहती हैं
और आखिर मे हाथ
खाली ही रह जाता हैं।।

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22 MAY 2021 AT 20:33

कही बारात और शहनाई, कही मौत सा मातम छाया हैं,
मनुष से डरने लगा मनुष, ये कैसा कलयुग आया हैं?
ड़र और संशय की चादर तले, सकूँ की नींद आ जायें कैसे,
जिन्दगी मानो मांगे जवाब, के क्या खोया क्या पाया हैं?

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15 MAY 2021 AT 0:41

हे ईश्वर! क्या तेरे यहाँ इंसाफ अभी भी होता हैं?
फ़िर हर दिन किसी को दुख पहुँचाकर, वो कैसे चैन से सोता हैं?

हँसता हैं, ठहाके लगते हैं, मंडली जमाकर रखता हैं,
उस जैसो को बकवास भा जाए उसकी, मिर्च मसाले रखता हैं।।

दोगलापन रग रग मे उसकी, शब्दों के बाण चलाता हैं,
हैरानी तो तब होती जब दूजे ही पल हितेषी हो जाता हैं।

वही हैं सबसे बड़ा ज्ञानी, यही कहता और कहलवाता हैं,
तस्कीन-ए-अना की खातिर क्या क्या नही आजमाता हैं।।

खैर...भला हो उसका भी, यहीं अब मन मे आता हैं,
मगर कर्मों का फल, कभी ना कभी तो सामने आता हैं।।

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9 MAY 2021 AT 11:11

ईश्वर का रुप लिखूँ, या जन्नत की बहार लिखूँ?
तूँ ही बता माँ, मैं कैसे तेरा प्यार लिखूँ?
शब्दों मे बयां हो जायें तेरी फ़िक्र, तेरी ममता,
आखिर कौन सी कलम से मैं बार-बार लिखूँ?

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