***चार कणिक मिश्रीक ***😢😢
2 साल बाद 20 दिन की छुट्टी
जब से ticket book किया
मानो पंख लगे थे, अपने गांव जाने को
लोग हमें पलायन का ताना देते हैं ।
उन्हें क्या पता ,अपने घर से दूर
हमारा भी मन तड़पता है ।
अपनों से मिलने को ,
वो हरीभरी वादियाँ देखने को ,
अपने खेत खलिहानों को देखने को,
पथरायी आँख से बाट जोहती माँ से मिलने को ,
भाई ,बहन, भाभी से मिलने को ।
और वो गुड़ , मिश्री दगड़ चहा सुडक्याने को ।
यूँ तो वो घूमती रोड बहुत तकलीफदेह होती है
सोचती हूँ स्वर्ग पहुंचने का रास्ता इतना आसान तो नहीं होता ,
मेरे गांव की वो हरियाली वो खेत,वो नदी,
वो पेड़पौधे और
वो भयंकर चढ़ाई !
बस यादें हैं
थोड़ी यादें पुन्तुरों में समेट लाये हैं
जिनमें भांग और ये ,और वो, और मिश्री ।।।
यादें बस यादें, ये यादें अब चार कणिक मिश्री में बसी हैं ।
पता नही क्यों, इन चार कणिक मिश्री में मुझे
मेरे गांव,मेरे अपनों की खुशबू आती है ।
कहने को ये शक्कर जैसी मीठी हैं ,
लेकिन मिश्री की बात ही अलग है ।
इनमें मेरे अपनों की, मेरे पहाड़ की यादें बसी हैं।
बस अब चार कणिक मिश्री ही बची हैं 😢
***मेरी यादें बस चार कणिक मिश्रीक ***😢😢****************************😢
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