धारा-लेखन   (Kumar Santosh 🌹)
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Joined 19 June 2020


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Joined 19 June 2020

के ख़ुल्द के दरवाज़े खुल गए जब जिंद-ओ-जान से आज़ाद हुए🌹
अब मरके भी क्या ख़ाक आरज़ू करूंँ जब हर ओर से बर्बाद हुए🌹

घुट घुट के जीते रहे, तकलीफों' ने लूट लिया मेरा चैन-ओ-करार🌹
आया है अब मय्यत पे मेरी, चले भी जाओ अब हम आज़ाद हुए🌹

के ख़ुल्द के दरवाज़े खुल गए जब जिंद-ओ-जान से आज़ाद हुए🌹
अब मरके भी क्या ख़ाक आरज़ू करूंँ जब हर ओर से बर्बाद हुए🌹

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मोहब्बत' की नज़्म सुनाते रहो, ऐसी फ़रियाद मैं मेरे गुलाब से करूंँ🌹
तालीम तुझे मैं परियों की दूंँ, रोज तेरी ही दुआ अरदास रब से करूंँ🌹

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दो पल मिल जाए तेरी बाहों में जीने के, ये रब से दुआ 'मांँगता हूंँ🌹
प्यार बिना सब सूना है, मैं तेरे संग 'खुशियों का संसार मांँगता हूंँ🌹

ये दिल करता है तुमको गाउंँ, तेरी ही कोई गीत ग़ज़ल सुनाऊंँ मैं🌹
हक़ीक़त' की दुनिया हो बेशक या तेरे रातों के ख़्वाबों मांँगता हूंँ🌹

मैं मतवाला हूंँ, पागल हूंँ, दीवाना हूंँ, मैं पल दो पल का शायर हूंँ🌹
मेरे टूटे फूटे अरमानों में, आ जाओ के तुमको ख़ुदा से मांँगता हूंँ🌹

दो पल मिल जाए तेरी 'बाहों में जीने के, ये रब से दुआ मांँगता हूंँ🌹
प्यार बिना सब सूना है, मैं तेरे संग 'खुशियों का संसार मांँगता हूंँ🌹

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मेरे दो लफ़्ज़ों' की परवाह कहांँ, तड़प रहें हैं हिज़्र-ए-अयाज़ में🌹
के ना उसे मेरे दर्द से 'ताल्लुक रहा, ना कमबख़्त मेरी नमाज़ में🌹

विरानियां' सी आती है नज़र, किसी तुफां के चले जाने के बाद🌹
वो ख़ामोशियों का दौर था कल भी ना कोई रौनकें हुई आज में🌹

मेरे दो लफ़्ज़ों' की परवाह कहांँ, तड़प रहें हैं हिज़्र-ए-अयाज़ में🌹
के ना उसे मेरे दर्द से 'ताल्लुक रहा, ना कमबख़्त मेरी नमाज़ में🌹

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दफ़अतन से जो लगी चोट मुझे, वो कलेजे से मुझे लगा लेती थी🌹
वो अमां थी या ख़ुदा की मूर्त, के ज़ख़्मों को अपने छुपा लेती थी🌹

दफ़अतन से जो लगी चोट मुझे, वो कलेजे से मुझे लगा लेती थी🌹
वो अमां थी या ख़ुदा की मूर्त, के ज़ख़्मों को अपने छुपा लेती थी🌹

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के चूड़ियों की छनछन में किसी को झूमता पाया था उन दिनों🌹
रौनकों की छांव में संग उसके, खूब जश्न मनाया था उन दिनों🌹

लम्हे वो सुकून के गुज़रे संग उसके, ये बात है बीते जमाने की🌹
मोहब्बत के सफ़र मे किसी को हमसफर बनाया था उन दिनों🌹

के चूड़ियों की छनछन में किसी को झूमता पाया था उन दिनों🌹
रौनकों की छांव में संग उसके, खूब जश्न मनाया था उन दिनों🌹

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कौन कहता है के अकेला' हूंँ मैं, और सिर्फ़ तन्हाइयों से ही बात होती है🌹
कमबख़्त ये फिजाएं भी खिल उठती है जब मेरे महबूब से बात होती है🌹

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अज़िय्यत' में जिए जा रहा हूंँ मैं, दर्द-ए-ज़ख्मों' को सीए जा रहा हूंँ मैं🌹
बेबसी के दौर से गुजरा हूंँ मै, दिन रात लहू के आंँसू पिए जा रहा हूं मैं🌹

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के अश्कों में डूब कर गहरा वो कितने दिन जी पाएगा🌹
मेरे रूठने पर मनाने वाला, क्या फिर से नही आएगा🌹

हाल है जो दिल का, अब पल में बद-हाल हो जाएगा🌹
तूंँ है मेरी हक़ीक़त या सिर्फ़ रातों का ख़्याल हो जाएगा🌹

के अश्कों में डूब कर गहरा वो कितने दिन जी पाएगा🌹
मेरे रूठने पर मनाने वाला, क्या फिर से नही आएगा🌹

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हजारों मुश्किलें, लाखों इम्तिहान फिर भी चल पड़ें है सीना तान🌹
अटल हैं, अडिग हैं, फ़ौलाद' सा मजबूत हैं हम नए दौर के इंसान🌹

के कर दूं कुछ रौशन फिजाएं, थोड़े गली गली हम चराग जलाएं🌹
जो बनी नहीं थी अरसे से चल बनाते है एक ऐसी अलग पहचान🌹

हजारों मुश्किलें, लाखों इम्तिहान फिर भी चल पड़ें है सीना तान🌹
अटल हैं, अडिग हैं, फ़ौलाद' सा मजबूत हैं हम नए दौर के इंसान🌹

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