उड़ती हैं रंग बिरंगी तितलियां इस गगन में,
बैठती हैं फूलों पे और जाती हैं भवन में।
लेती हैं सदा मधुर रस ये फूलों की,
इनको देख मन करता है इनका जीवन जीलूँ जी।
बड़ा ही खुशनुमा बनाती हैं ये घर के माहौल को,
बच्चे दौड़ते हैं पीछे पीछे इनको पकड़ने को।
प्रकृति को सुंदर बनाने में इनका भी हाथ है,
पीछे कहाँ हैं फूल इनसे जो भी प्रकृति के साथ हैं।
फूलों की मधुर सुगंध इनको खींच ले जाती है,
इसीलिए तो तितलियां भवन में भी आ जाती हैं।
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