हमारी खुशियां महंगी होती गई।
एक समय था,
जब चॉकलेट देख उछल पड़ते थे।
जब बागानों में खेला करते थे।
जब वृक्षों को मित्र बनाया करते थे।
न कोई मंजिल ,न कोई जिम्मेदारी,
न कोई दुश्मन,सबकी दोस्ती लगती थी न्यारी।
चोट आती थी तो चिटी काटी
कहकर उठ जाया करते थे।
अब वो सब छूट गया।
दोस्त छूट गए,जिम्मेदारी बढ़ गई।
दुश्मन अनेको है बाजार में,
सारी छोटी छोटी खुशियां हमसे रूठ गई।
चोटे लगती हजार है,
कभी लगता है चिटी भी हमसे रूठ गई।
जैसे जैसे हम बड़े होते गए,
हमारी खुशियां महंगी होती गई।
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