आसमान की ऊंचाइयां छूहना चाहते हैं सभी तो कोई जमीं की गहराइयों को जानना चाहता क्यूं नहीं जहां खुद के पांव पे खड़े भी न हो पाएंगे जाना चाहते हैं उस अंबर में सभी जो ढोती है भार अपना उस जमीं को कोई पूछता कियू नहीं भरले उड़ान अगर एक बार कोई तो मुड़ अपनी जमीं पे कोई लौटता क्यूं नहीं...