भीतरी काया त्याग कर ऊपरी काया को तुम रहे हो सँवार पर जो जरूरी है तुम्हारे लिये इस जीवन के अनन्त काल तक उस काया के अंदर भर लिये न जाने कितने अनगिनत विकार छोड़ दे सब प्रलोभन समझ जीवन का तू सही से सार।
तेरे प्रेम के सागर में मैं डूबना और खोना चाहता हूँ अपना सर्वस्व बस तुम मुझे अधिकार दो अपने करीब आने का अपने होने का मैं तुझे कभी भी निराश नहीं करूँगा अपने प्रेम की किलकारियों से। तुझे उतना प्रेम दूँगा जितना प्रेम तुमने शायद ही कहीं पढ़ा होगा या फिर सुना होगा।
भूख ही तो है जिसकी कशमकश तोड़ देती है हर उस इंसान को, जो मोहमाया के चक्कर में फँस कर लुटा देता है अपनी सर्वस्व शक्ति, बन जाता है अभागा और कर लेता है समझौता, अपने आप से अपने विचारों से अपने संस्कारों से।
स्त्री भूखी होती है प्रेम की, विश्वास की तुम्हारे साथ की, वो नहीं चाहती कोई धन दौलत से भरा आलीशान घर या कोई जागीर, वो तो चाहती है सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा स्नेह, जो तुम उसे अक्सर नहीं देते, सिवाय अपनी हवस भरी भूख के।