चंद्रविद्या   (चंद्रविद्या)
890 Followers · 90 Following

Joined 22 May 2019


Joined 22 May 2019

यादों में बसे हो तुम.....
कैसे तुम्हे भुला करू.....
दिल की....बैचेनिया ,
दिल की बैताबिया
आंखों से छलके तेरे लिए आंसू
धड़कनों की आहटे
दिल पर न है काबू.....
यादों में बसे हो तुम....
कैसे तुम्हे भुला करू ......
कदमों में तेरी , सारी तकदीर हमारी
मेरा दिन भी तुम्हारा , रात भी तुम्हारी
जब पूरी जिंदगी ही बने तुम.....
कैसे तुम्हारे बिन मैं रहूं
यादों में बसे हो तुम.....
कैसे तुम्हे भुला करूं

-



झूठे नकाब और नकाबो के पीछे चेहरा भी झूठा।
छुप जाते है इरादे , असली मकसद और हदे ।
मुस्कुराते चेहरों के पीछे का छल ,
बैठे–बैठे कर जाते सारे प्रपंच,
हाथ मिलाते और कहते
साथ है हम ।
लोहे का सच लोहे को नहीं पसंद
चढ़ा लिए जाते खुद पर सोने का रंग
मुझे अफ़सोस है
यहां लोगो को असली चेहरा खुद का पसंद नहीं आता,
इंसानी फितरत चढ़ा लिया है जाता मुखौटा।

-चंद्रविद्या उर्फ़ रिंकी

-



come come come,
come to me.
hold my hand
and go to free
when you afraid,
when you sad.
come sit down
think about your dare.
close your eyes ,
feel sunrise,
think all types of flower here
air is everywhere
you are not alone,
no here anyone non

-चंद्रविद्या उर्फ़ रिंकी

-



इधर –उधर ताकती नजरे
पड़ोसियों के झांकती है घरे
कुछ ताकती है कांखियो से
कुछ रहती है दीवारों से कान चिपकाएं
कौन आया ? कौन गया ?
रहता है ध्यान
गिनती है चप्पले ।
फिर होती है खुसुर –फुसुर ,
बढ़ती है बात ।
फिर औरतों की बैठके, औरतों के साथ।
जमता है जमावड़ा ।
कोई बैठे ,
कोई सुनता है खड़ा
कुछ छूटा ,कुछ पकड़ा,
कुछ रहती नज़रे अड़ा
फिर घंटो होती है चुगलियां
और चलती है,हर घर की कहानियां।

-चंद्रविद्या उर्फ़ रिंकी

-



सरकारें गिरती और उठती है
मगर बदलती नहीं जनता
वो तब भी बिक जाती थी
एक बोतल और कुछ एक नोटो में
बिक जाते है वोट सारे आज भी
और नेता छप जाते है प्रथम पेज के फोटो में
इलेक्शन में जो घुमा करते
गली गली चौबारों में
हाथ जोड़े सफेद कुर्ते
और मोटे –मोटे मालों में
दिखते नहीं अब हमें
क्या गिनती करे तुम्हारी कर्जदारों में
तुम घुमा करते मुंह छुपाए
ए.सी.वाले कारों में
भ्रष्टाचारी जात तुम्हारी
उजले कुर्ते खद्दरधारी
शासन और शोषण है तुम्हारी खून में
मीठी बाते और गद्दारी है तुम्हारी हर एक बूंद में

✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या

-



मुस्कुराते होठों के करीब
गर्म चाय की चुस्कियां
तुम्हारी उंगलियों से लिपटी , और कप की कुंडिया
सुबह का नज़ारा
बस अब कुछ और नहीं
बहकते सूरज की किरणे,
चूमते तुम्हारे गालों को, कानों की बालियां
खिलखिलाती तुम्हारी नज़रे
और तुम्हारी नज़रों से लगी सुरमो की गुस्ताखियां
तुम्हारी नज़रों का नज़ारा बस अब कुछ और नहीं

-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

-



खंबो और कस्बों में जलती भूकभुकाती बल्ब
अटकी जीवन मध्य यार्थात और कल्प
अर्ध रात्रि स्वानो के स्वरों का विलाप
सुनाई देती सिर्फ झिंगुरों और सांसों की आबाज
पत्तो की सरसराहट
पवनो की थपथपाहट
है सन्नाटे में पसरा अंधेरा चारो ओर
मन की छटपटाहट
और छटपटाते मन के भीतर का शोर
एकांत मन का सवाल
कुछ टूटा कुछ बिखरा सा जवाब
अकेलेपन की घबराहट
मिटती नहीं अकुलाहट

-



Dear day
You come out Evey day
With a new hope
Like a new rain drop 💧
Which falls from the sky
They don't know
Where come and why?
But they live
Every day feel
They feel the sunshine
Feel the hardness
Feel everywhere cruel
Feel the divine
They feel everything
And they say everything is fine

-



हया के पर्दे के पीछे एक चेहरा ,
परदे की ओट से झांकता
जहां कुछ झिझक और
कुछ कहने की हिचकिचाहट
थरथराती उंगलियां
और उंगलियों की आपस में टकराहट
घबराहट के साथ तुम्हारी मीठी मुस्कुराहट
थी तुम कुछसबसे अलग
उठती गिरती शर्माती
न कह कर भी कहती थी
तुम्हारी वह पलक
मधुर स्वपन सी थी तुम्हारी पहली झलक

✍️रिंकी उर्फ चंद्रविद्य

-



वो कहते है खुद को समाज
मुझे खेद है यहां समानता नहीं आज
कह रहे है धर्म और संस्कृति की हम रक्षा कर रहे ।
लेकिन सोचती हूं यह कैसी संस्कृति है ?
यह कैसा है धर्मराज ?
जहां इनके नाम पर हो रहा है मनुष्यता का हास ।
मणिपुर की त्रासदी , महिलाओं के साथ हुई घिनौनी वारदात
मैं पूछती हूं कौन है इसका जिम्मेदार ?
आह! यह पीड़ा
जहां मीडिया करती है मुर्खता
और गढ़ती है सीमा हैदर की कहानियां
और देखती है बेवकूफ जनता ।
नालायक सरकार की भ्रष्ट नेताओ का नंगा नाच
मैं कहती हूं कपड़े नहीं उतरे स्त्री के
यहां नंगी हुई है सरकार और नंगा हुआ समाज
मेरा रूदन ह्रदय कर रहा चीत्कार
कैसी थी मेरी धरती , और हो गई है कैसी आज ।

✍️ रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या

-


Fetching चंद्रविद्या Quotes