बृजेन्द्राणी सिंह  
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Joined 2 September 2020


Joined 2 September 2020

किस्सा हूं, कहानी हूं,
शायद अपनो के लिए ही बेगानी हूं,
लोगों के जज्ज़बातो की मैं रखवाली हूं,
अपनो के हिस्से से ही मैं बेगानी हूं,
लोगों के आशा और इच्छा की मैं कुंजी हूं,
मैं अपने ही संघर्ष की खुद एक कहानी हूं,
अपने ही स्वाभिमान के मैं एक सौदागरनी हूं,
सबकी जिंदगी का एक छोटा सा सार हूं,
अपने लिए अपनी ही ज़िंदगी का मैं एक छोटा सा हिस्सा हूं
लोगों के ख्वाहिशों की चाभी हूं,
वक्त के हाथों का पहिया हूं,
लोगों के द्वारा दिया गया एक धक्का हूं,
बस इसीलिए शायद मैं अपनो के लिए बेगानी हूं|

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वाकिफ नही हो तुम शायद मेरे उन जख्मों से,
जिन्हे मैने अब तक तुम्हे कुरेदने ही नहीं दिया|

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वक्त का पहिया कुछ ऐसे तेज़ी से घुमा की,
मेरे बहुत से अपनो को अपने साथ ले गया...

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बहुत शांत व्यक्ति हो गई हूं मैं,
कुछ लोगों को बहुत कुछ सिखाने के लिए,
और कुछ लोगों से बहुत कुछ सीखने के लिए...

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अपनी शख्सियत की लड़ाई में अपनो से ही लड़ रही हूं मैं,
अपने वज़ूद को खड़ा कर रही हूं मैं|

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अच्छे बुरे के समझ भूल गई हूं शायद मैं,
बुरे को अच्छा और अच्छे को बुरा समझा है मैंने|

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ज़िंदगी के सफ़र में कुछ यूं अकेले हुए हैं,
कि गैरों का तो छोड़ो,
अपनो का भी सहारा न मिला |

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अपनो के शहर में बेगाने हैं हम,
शायद कुछ अपनो ने हमे,
अपना न माना होगा|

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शायद कुछ लफ़्ज़ों का हेर फेर है,
तभी अपनों ने भी शायद हमें,
अपना न समझा |

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हाँ, हम बिछड़े है,
बिछड़ तो गये,
क्यों बिछड़े,
यहीं तो सवाल है,
तुम मेरे थे ही नही,
ये इन सवालों का छोटा- सा
जवाब है|

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