बर्ग-ए-शफ़क़   (ऋतु)
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Joined 25 January 2020


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एक मुरझाया दिल और कुछ टुकड़े अरमानों के,
बस यही हासिल है मुझे इस ज़िन्दगी के सफर में।

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नहीं भाता मुझे, यूँ तेरा बार बार उसके दर पे जाना,
पर मालूम है मुझे कि मेरे बस में सबकुछ नहीं।

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चाहें कितनी भी तेज क्यों ना हो,
अवसाद की काली छाया,
जीवन स्याह और जीवंतता स्वाह कर देती है।

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इन लरज़ते लबों की कहानी

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तुम, तुम्हारी कविताएं और ये सुबह की चाय,
बांधे रखती है मुझे घंटो, उस बालकॉनी की कुर्सी से।

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बड़ी मुद्दत हुई,तेरे काँधे पे सिर रखे हुए,
आज थोड़ी फ़ुरसत हुई तो,तू नहीं साथ मिरे।

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नम आँखों के जज़्बात ,जो शब्दों में बयाँ नहीं होते,
बस ठंडी आह भरकर दफ़न हो जाते हैं खामोशी में।

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ले जाता है हमें
एक लंबी तलाश में,
भ्रम के जंगल में,
ज़ज़्बातों के दंगल में,
और एक सफर पे,
जो कभी खत्म नहीं होता,
अपितु गहराता जाता है,
मौन साधे वक़्त के साथ,
तेरी यादों के सहारे।

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तेरे कामपाश में

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Memories intertwine with life,weaving a fragrant tapestry of existence.

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