BRAMHWANSHI HAR SHUKLA   (HARSH SHUKLA)
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Joined 9 December 2018


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Joined 9 December 2018
24 APR AT 23:25

आगामी रचना के कुछ अंश -

अंतिम पथ ?
हां! अंतिम पथ ,

वह पथ जिसपर जा कर मिलना है हमको ,
नव जीवन के नए अंकुरित फल से ,

या!

चलना है मिलने उससे जिनसे भेजा था ,
जीने को यह जीवन फिर से .

✍️✍️
Harsh Shukla

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शीतलता - भाग 1


ये बादल फिर तुम आए हो,
संघ में ढेरो बूंदे लाए हो,
राह देखकर थक गई अखियां,
जल्दी बूंदों की वर्षा से नहलाओ मुझको,
आग भरा है पथ जीवन का,
जल्दी इन्हे बुझाओ तुम तो!
जल्दी बूंदों की वर्षा से नहलाओ मुझको!....

अच्छा ठहरो तनिक बताओ मुझको!
कुछ आंसू के बूंदों से, 
दुख पर रोने यदि आए तुम तो,
फिर तुममें सबमें भेद ही क्या,
तुम लौट ही जाओ वापस अब तो,
कुछ बूंदों की वर्षा से मत,
जीवन का हास्य बनाओ तुम तो,
अच्छा ठहरो तनिक बताओ मुझको!...

मैंने सोचा अपनी वर्षा से तुम,
पथ के अंगारे शीतल कर जाओगे,
जल गए पांव जो चल-चलकर अब,
उनको कुछ तुम सुख पहुंचाओगे,
हुआ मालिन बदन है मेरा,
खा खा कर धूल सब रस्तो की,
अपनी सीतल बूंदों से तुम,
मुझको भी नहलाओगे,
पथ के अंगारे शीतल कर जाओगे...    

✍️✍️ हर्ष शुक्ल(Harsh Shukla)

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4 JAN AT 22:23

हम नजर अंदाज करते रहे 
गलतियां जनाब की
रिश्ता चला और निभता चला गया ,

एक दिन खता हो गई!
कि हमने गौर से देख लिया
रिश्ता उलझा और उलझता चला गया ..

✍️✍️ हर्ष शुक्ला

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4 JAN AT 21:15

एक राह अगर खत्म हुई तो
दूजे पथ पर पग धारूंगा ,

लघु जीवन है
बड़े हैं सपने ,

अगर टूट गए कुछ तो क्या
हार नहीं मानूंगा ,

नव सपनों के स्पंदन से
घोर परिश्रम के बंधन से
दूजे पथ पर पधारूंगा ,

लघु जीवन है
बड़े हैं सपने
हार नहीं मानूंगा
हार नहीं मानूंगा..


✍️✍️ हर्ष शुक्ला

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30 NOV 2023 AT 7:40

एक और शाम ढल गई!

कल सुबह की आस में , की दौड़ को पूरी करेंगे.

दौड़ तो ना पूरी हुई!

वक्त भी अब ढल गया , जो था अपने पास में.

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23 SEP 2023 AT 0:27


एक कारवां है शांत
एक है मचल रहा,
रास्ते है अलग-अलग
समय है चल रहा,
कुछ क्षण के लिए ही सही
पर यह दीप जल रहा,
झूम के जिया या
गुमशुदी में रह रहा,
पाने को अपनी मंजिल
है वक्त ढल रहा,
एक कारवां है शांत
एक है मचल रहा..
पाने को अपनी मंजिल
है वक्त ढल रहा...

✍️✍️ हर्ष शुक्ल


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31 AUG 2023 AT 22:16

हो चला है भार कलयुग का बहुत विकराल अब,
तन बहुत आसान मिलना, प्रेम दुर्लब यार अब..

✍️✍️
हर्ष शुक्ल

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19 AUG 2023 AT 0:21

एक जमाना था जब हम भी दहाड़ मारते थे,
सामने जो आए उसको पछाड़ मारते थे,

अपनो के नख ने घायल कर दीया,
वरना पंजे हमारे ललकार मारते थे..

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4 AUG 2023 AT 16:14

" देह और चिता -- Part 2 "

देख कर जलती चिता
आग की लपटों में लिपटी सारी व्यथा
हो रही है भस्म धीरे धीरे,

सोचकर कल की कथा
आज होती है सारी व्यथा,

देह अन्त जीव भस्म में पावे
आत्म तत्व को फिर क्यों विसरावे,

निजी जीवन को नित ही जिओ
मत माया काया के विष के पियो,

चिता कराल अग्नि है धारी
पार न इसको कर पता तनधारी,

जीवन का आनन्द स्वयं
जीवन को छड़ छड़ जीने में है,

देख कर जलती चिता
आग की लपटों में लिपटी सारी व्यथा
हो रही है भस्म धीरे धीरे...

✍️✍️ ब्रम्हवंशी हर्ष शुक्ल

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4 AUG 2023 AT 16:07

" देह और चिता -- Part 1 "

देख कर जलती चिता
आग की लपटों में लिपटी सारी व्यथा
हो रही है भस्म धीरे धीरे,

तेज से जो तन बना
तन से था जो मन बना
भस्म सब हो गया
अब राख ही है बच पड़ा
वो भी जल में जा मिलेगा
जल से फिर वर्षा बनेगा
वर्षा से फिर अन्न उगेंगे
जा के ये मानव तन में मिलेंगे
तन के पाचन शक्ति से ये
तेज शक्ति बन निकलने
नव जीवन का सृजन करेंगे,

चक्र पुनः फिर से चलेगा
आग में यह तन जलेगा
छोड़ कर माया को सारी
फिर नयी माया बुनेगा,

चक्र पुनः फिर से चलेगा
आग में यह तन जलेगा
आग में यह तन जलेगा..
To Be Continued.

✍️✍️ ब्रम्हवंशी हर्ष शुक्ल 


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