शीतलता - भाग 1
ये बादल फिर तुम आए हो,
संघ में ढेरो बूंदे लाए हो,
राह देखकर थक गई अखियां,
जल्दी बूंदों की वर्षा से नहलाओ मुझको,
आग भरा है पथ जीवन का,
जल्दी इन्हे बुझाओ तुम तो!
जल्दी बूंदों की वर्षा से नहलाओ मुझको!....
अच्छा ठहरो तनिक बताओ मुझको!
कुछ आंसू के बूंदों से,
दुख पर रोने यदि आए तुम तो,
फिर तुममें सबमें भेद ही क्या,
तुम लौट ही जाओ वापस अब तो,
कुछ बूंदों की वर्षा से मत,
जीवन का हास्य बनाओ तुम तो,
अच्छा ठहरो तनिक बताओ मुझको!...
मैंने सोचा अपनी वर्षा से तुम,
पथ के अंगारे शीतल कर जाओगे,
जल गए पांव जो चल-चलकर अब,
उनको कुछ तुम सुख पहुंचाओगे,
हुआ मालिन बदन है मेरा,
खा खा कर धूल सब रस्तो की,
अपनी सीतल बूंदों से तुम,
मुझको भी नहलाओगे,
पथ के अंगारे शीतल कर जाओगे...
✍️✍️ हर्ष शुक्ल(Harsh Shukla)
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