न बहारों को नवाज़ा, न मसर्रत का इस्तकबाल किया,
अहल-ए-फ़न है नाम के बस, हर चीज़ पर सवाल किया
हर मर्ज़ का इलाज है पर सोचने की बीमारी का नहीं
बुरे हालतों में अपना और ज्यादा बुरा हाल किया
इस बाग़ का हर गुल फ़रोजाँ, सारी टहनियाँ सलामत,
बाग़बान को याद नहीं उसने कब अपना ख़याल किया
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