Brajanandan Gupta  
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ख़्याल,ख़ामोशी,खालीपन और ख़्वाहिशें।:-)
Joined 24 January 2019


ख़्याल,ख़ामोशी,खालीपन और ख़्वाहिशें।:-)
Joined 24 January 2019
20 MAR 2022 AT 15:46

क्या कहे हमने किया क्या जिन्दगी में
कुछ नहीं बस उम्र गुज़री खुदकुशी में

क्या हुआ तुझसे बिछड़ कर पूछ हमसे
दिन कटे बादा-कशों की दोस्ती में

ग़र इरादा मौत का हो प्यार कीजे
खूँ-खराबाँ कुछ नहीं हैं आशिकी में

प्यार करके देख तू कहता रहा जो
मर गया वो दोस्त मेरा दिल्लगी में

क्यों करे हम आस फिर से जिंदगी की
था न खुश कोई कहीं मेरी खुशी में

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10 FEB 2022 AT 21:50

बहार-ए-गुल नहीं पूरा बहाराँ देखते हैं
तुम्हें हम पास पाकर ये नज़ारा देखते हैं

सभी को फ़िक्र पैसों की, लगे है सब कमाने
इधर हम हैं कि बस तुमसे गुज़ारा देखते हैं

जभी होता मन उनका दिलो-जाँ से हँसने का
इधर आके मज़ार-ए-दिल हमारा देखते हैं

उसे दिखते सभी भोले सभी भाले नज़र से
न जाने वो हमें ही क्यों अवारा देखते हैं

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10 FEB 2022 AT 21:50

क्या सुनाए दर्द हम अपने हाल के
ये बरस है हू-ब-हू पिछले साल के

कुछ जवाब-ए-तर्क जब उन्हें मिला नहीं
दफ़्न थी जो बातें वो लाए निकाल के

बाल खोल के वो कल अपने छत गई
अब फिज़ा में ताज़ा महक उनके बाल के

भूलने को भूल जाए हम ज़माना पर
हम भूलाए कैसे खुशबू उनके बाल के

बस यही हसरत मेरी कि एक दिन कभी
नाम मेरा आए उनके लब-ए-लाल पे

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31 AUG 2021 AT 9:31

दिन मेरे बीतते है बज़्म-ओ-जाम के बीच
रातें गुज़रती है दीवार-ओ-बाम के बीच

नींद की तलाश में कभी ये सोचा कभी वो
भटकता हूँ मैं ख्वाबों के आवाम के बीच

मेरे नसीब में थी मुसलसल दौड़ने की सज़ा
सो मुझे चैन नहीं मिलता आराम के बीच

जिसके आने से चहक उठी थी सारी दुकानें
टूट ही गया वो शय बाज़ार-ओ-दाम के बीच

थी तूफ़ानें कई, आफ़ते भी कम कहाँ थी
पर पीपल खड़ा रहा इतने कोहराम के बीच

यूँ तो मैं काईल नहीं हूँ जंगों-फसाद का पर
कोई आके दिखाए मेरे और मदाम के बीच

खानाबदोश हूँ और इक घर की तलाश है
सुना है इक खाली जगह है तेरे नाम के बीच?

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4 AUG 2021 AT 19:22

हर सिम्त से सवालों का घिराव
कुछ जरूरी सवाल, कुछ नाकारे

(पूरी नज़्म Caption में)






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3 AUG 2021 AT 14:56

जो बतानी थी आखिरी राज़ नहीं पहुँची
मैं चीखा पर उस तक आवाज नहीं पहुँची

वो शमा आएगी इस तीरगी को मिटाने
तो हुआ क्या अगर वो आज नहीं पहुँची

घिरा रहा आफ़त-ए-उल्फ़त में उम्रभर पर
मुझ तक कोई मदद-ए-जहाज नहीं पहुँची

फर्क इतना है आपके और मेरे कहानी में
उनके दिल तक हमारी अंदाज नहीं पहुँची

मरीज़-ए-आज़ार-ए-हिज्र चीखते-चीखते
गुज़र गया पर उस तक इलाज नहीं पहुँची

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11 JUL 2021 AT 20:32

ग़म-ए-फ़िराक में हम यूँ करने लगे,
गज़लें लिखने लगे, उर्दू पढ़ने लगे

शिकायतों का जमघट जमा यूँ अक्ल पर
जो न करना था, हम वही करने लगे

होने लगी ज़िंदगी से इस कदर नाराज़गी
हम कातिल-ए-अरमानों पर मरने लगे

खुशियों से फरोजाँ नहीं होती किरदारें
ग़म की आँच पड़े और हम निखरने लगे

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6 JUL 2021 AT 16:38

न बहारों को नवाज़ा, न मसर्रत का इस्तकबाल किया,
अहल-ए-फ़न है नाम के बस, हर चीज़ पर सवाल किया

हर मर्ज़ का इलाज है पर सोचने की बीमारी का नहीं
बुरे हालतों में अपना और ज्यादा बुरा हाल किया

इस बाग़ का हर गुल फ़रोजाँ, सारी टहनियाँ सलामत,
बाग़बान को याद नहीं उसने कब अपना ख़याल किया

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5 APR 2021 AT 13:28

इस उम्मीद में कि शायद
कल का दिन प्यारा होगा,
ना जाने हमने कितनी बार
दुख में दिन गुज़ारा होगा

(Read Caption)

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26 JAN 2021 AT 19:31

तुम,मैं भागीरथी के किनारे
चलो कुछ दिन वहाँ गुज़ारे

(Read Caption)

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