क्या करूँ मै;
एक तो अपने दिल मे जगह दे पाती नही हो !
दूसरी, मेरी नज़रो के सामने से दूर जाती नहीं हो !!
उम्मीद लगाए बैठा हुं,
तेरी तरस खाने को मुहब्बत में ...
जो की मानता हुँ , ग़लत है ।
पर मात यहाँ भी खा जाता हुं,
तुम हो की नजदीक आती नही हो !!
प्यार शायद था हीं नही मुझसे,
पर सवाल ये है की
इसे भी तुम हक से बतलाती क्यूं नही हो !!
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