रोना भूलाकर तबस्सुम से चेहरा सजाये रखती हूँ ,
यकीनन हर अँधेरी रात के बाद खुशनुमा सहर आती हैं !
मेरी कलम लिखती हैं हर बात कितनी गहराई से ,
तब जाकर तो मेरी गजल में बहर आती हैं !
मुझें पसंद हैं सबसे घुल-मिल कर रहना ,
क्या कहिये , अदावत तो ज़िंदगी में कहर लाती हैं !
मेरी शख्सियत में इंकलाब आया ही नहीं,
मेरा सुकून हैं गाँव, मगर ख़्वाहिशें मुझें शहर ले आती हैं !
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