"कोई राज़ छुपा होता है, हर शब्द के पीछे कोई जज़्बात छुपा होता है, यू , तो हम सब बयाह नही कर सकते, क्योंकि, मानो , हर चेहरे के पीछे कोई अंदाज़ छुपा होता है। "
जो कल बोलने पर भी समझ ना पाते थे चार दीवारों में कैद उस मां की आवाज़.... आज घर में वक़्त काटना उनका मुश्किल सा हो रहा है..... जो दुनिया घूमकर घर आते थे समय देखकर अक्सर केह दिया करते थे, समय कहा ही निकल गया आज पता ही नहीं चला.... वह आज घर में बंद बस घड़ी देखकर एक ही बात दोहराते हैं...
समय रुक सा गया है ....
मां की आवाज़ और चुप्पी अब दोनों ही सुनाई देती है उनको....
मान लो तो मददगार और ना मानो तो घमंड, यदि कर दी तो सही और ना करके भी कोई ज़ुल्म नहीं। सोच लो हमदर्द यदि ना सोचो तो फर्क नहीं, फ़िक्र थी, इंसानियत थी तो दिया हाथ बढ़ा ना किया तो क्या किया, रख बेचकर तू आया इंसान की यह फितरत सभी, दिखला दिया तू खोखला ना तू सही ना ज़मीर तेरा।
रख बेचकर तू आया इंसान की यह फितरत सभी, दिखला दिया तू खोखला ना तू सही ना ज़मीर तेरा।
बसेरा है जिनको, घुट रहा जी उनका घर में अपनों के साथ पूछ कोई उनको को भी, जिनपर ना छत ना मां बाप, तुमको खाने को है खाना, है अपनों का भी साथ, शाम की चाय की मिठास साथ ही किस्सों की वोह सौगात।
पूछ कोई उनसे भी ना अपना कोई और ना ही कोई जज़्बात, बस कहा किनारे पर ही रहना, रख ज़िन्दगी को अपने तू पास, अगर नहीं बन जाने देना चाहता मौत को भी अपनी तू एक वारदात।