Bharat Singh Rana   (© चरित्र)
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Joined 28 February 2017


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Joined 28 February 2017
30 JUN 2021 AT 23:25

लकीरें पड़ने का हुनर
आना चाहिए हर किसी को,
क्योंकि ज्यादा फर्क नहीं हैं
मददगार और तलबगार में
हाथ दोनो ही बढ़ाते हैं।

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25 APR 2021 AT 21:30

पूरा दिन बहुत याद आती हो तुम,

आंखें खुलते ही क्यों चली जाती हो तुम?

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18 APR 2021 AT 20:03

तड़पते रहे एक एक सांस को
पर आई ना मौत भी हमे,
उसका आखिरी दीदार जो करना था।


उम्र बीत गई पर
इश्क भी दोबारा नहीं हुआ हमे,
आखिरी सांस तक
उससे प्यार जो करना था

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10 APR 2021 AT 18:46

खुशी है के
ताह उम्र इंतजार के बाद ही सही,
उसका दिया गुलाब तो आया।

और गम है के
मैं अर्थी से उठ भी ना पाया।

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5 APR 2021 AT 11:06

नए जमाने से सीखा है,
रिवाज पुराना।

दूसरों के लिए दवा बनते–बनते,
खुद के लिए जहर बन जाना।

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18 MAR 2021 AT 19:35

first build a strong foundation.

Same applies to relationships.

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18 MAR 2021 AT 15:36

हम परवाह करते रहे,
वो लापरवाह बनते गए।
हम जख्म लिखते रहे,
लोग वाह! वाह! करते गए।

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13 MAR 2021 AT 0:10

मतलब की दुनियां है
और
फरेबियों का बोल बाला है,

दोगलों की वाह! वाह!
और
सच्चों का मुंह काला है।

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12 DEC 2020 AT 22:17

Weed

Eat

Repeat

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12 DEC 2020 AT 21:54

आवारगी ने मुझे तेरी
क्या से क्या बना दिया।

मेरा ही गुनहगार था तू
मुझे ही बेवफ़ा बना दिया।

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