Bhanu Pratap Bhadauriya   (©भानुप्रताप भदौरिया)
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Joined 17 September 2018


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Joined 17 September 2018

तू आई है जिंदगी में ख़्वाब की तरह।
सूखे पड़े दरिया में आब की तरह।

चाहे खिले हों कई फूल गुलशन में,
तू महके किसी सुर्ख गुलाब की तरह।

तू क्या है मेरे लिए मत ही पूछ,
तू है मेरी पसंदीदा किताब की तरह।

मेरा क्या है कुछ भी हो जाएगा,
दुआ है तू चमके महताब की तरह।

प्यार है और तुझी से हैं सारी शिकायतें,
तू है मेरे लिए किसी अहबाब की तरह।

बांटता रह सभी को रोशनी 'भानू'
जलता रह फलक में आफताब की तरह।

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प्रिय तुम,
कैसी हो? उम्मीद है अच्छी ही होगी और खुश भी। कितना याद आती हो तुम, शायद मैं भी आता हूं तुम्हें। नहीं भी आता हूंगा तो कोई बात नहीं, मैने कभी कहा भी नहीं कि तुम मुझे याद भी करो। — % &तुम्हें कुछ बताना था, पर बात करते समय कभी कह नहीं पाया, हमेशा ये बाते पता नहीं क्यों जुबान पर आते आते रुक जाती थी, और बहुत बार कोशिश की तुम्हें बताने की, कि तुम कोई साधारण सी दिखने वाली लड़की नहीं हो, तुम असाधारण हो, इतनी कि तुम्हें देखते समय कभी मेरे दिमाग में चांद का ख्याल नहीं आया, जब कभी भी मैने तुमसे बात की, हमेशा मैने तुम्हें आकाशगंगा के सदृश पाया और मैं मात्र एक भानु। इतना जानते हुए भी तुमने मुझे अपना बनाया। — % &हम जब भी कभी बात करते हैं, चाहे वो शाम की चाय के साथ की चर्चा हो या चांदनी रात में छत पर बैठकर होने वाली बातचीत... हमेशा ही तुम बाहों के दरमियान रहकर या कंधे पर सर रखकर सुनती हो या कभी-कभी मुझे अपनी गोद में लिटाकर । हर वार्तालाप में तुम्हें निहारते हुए तुम्हारे सौंदर्य और सौम्यता की वर्णन के लिए मेरे पास शब्दों का अभाव ही रहा।— % &तुम्हें याद है कि उस दिन जब हमने साथ में डूबते भानु को देखा, सच बताऊं मैं उस दिन डूब गया था और अब उगना भी नहीं चाहता, तुम क्षितिज के पार की वह शक्ति हो जहां से पृथ्वी पर अस्तित्व का संचालन होता है।— % &तुम जैसी हो, वैसी ही रहना। बहुत कुछ बताना है... पर इस बार के लिए इतना ही ...। बस इतना कहना है कि जब भी अकेला होता हूं मैं...याद आती हो तुम।♥️

तुम्हारा मैं (भानु)— % &

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गुल ने गुलशन को गुलपोश बना रखा है।
खुशबू से अपनी मदहोश बना रखा है।

कैसे ना आए नींद आगोश में उसकी,
बाहों को उसने शब-पोश बना रखा है।

नहीं सुनना चाहता मैं बुराई किसी की,
कानों को अपने कम-गोश बना रखा है।

इश्क क्या हुआ कुछ भी और याद नहीं,
इश्क ने मुझे ज़ूद-फ़रामोश बना रखा है।

किसके जहन में क्या है, पता नहीं लगता,
सबने ही चेहरे को रू- पोश बना रखा है।

हर किसी से होते हैं झगड़े ऐसे शख्स के
जिसने अपने आप को मय-नोश बना रखा है।

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आँखों ही आँखों में इशारा करके।
बैठे हैं दुनिया से किनारा करके।

इश्क में लफ्ज़-ए-बयानी क्या है,
वो चले गए जैसे बर्क पारा करके।

अंजाम-ए-मुहब्बत से वाकिफ हूॅं मैं,
जी लूॅंगा फिर भी खसारा करके।

मुहब्बत में कुछ भी यकतरफा न हो,
कुछ भी करो पर इस्तिशारा करके।

मुद्दत बाद किसी ने दस्तक दी है,
देखते हैं दिल को तुम्हारा करके।

हल्का रखो गमों के बोझ को 'भानू'
मुश्किल है जीवन यूं पुश्त्वारा करके।

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25 APR AT 13:22

तेरे इश्क में गुज़र जाने से।
मैं काफ़िर हुआ जमाने से।

लोग आँखों से पढ़ते हैं,
इश्क ना छिपता छिपाने से।

ख्वाहिशें बोझ लगती हैं,
हसरतें दिल में दबाने से।

क्या रखा है रूठने में,
गले लग किसी बहाने से।

रिहा कर दे परिंदो को,
कैद हैं इक जमाने से।

रिश्ते टूट जाया करते हैं,
शक दरमियान लाने से।

कहानी क्या मुकम्मल होगी,
बस 'भानू' के सुनाने से।

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// प्रेम कुंडलियां //

आओ छत पर बैठिए, करिए बातें चार ।
पूनम की इस रात में, उमड़े प्रेम अपार।
उमड़े प्रेम अपार, विकलता हिय में भारी।
बंधा प्रेम का पाश, मानो मोहिनी डारी।
खोलो उलझे केश, तनिक न तुम शरमाओ।
मान 'भानु' की बात, पास में मेरे आओ।।१।।

कांधे पर तुम सर रखो, पकड़ो मेरा हाथ।
ऐसे ही बैठे रहो, गुजर जाएगी रात।
गुजर जाएगी रात, प्रेम के आलिंगन में।
निखरेंगे जज़्बात, इस प्रेम समर्पण में।
प्रणय की यह रात, रहो न आधे - आधे।
प्रेममयी बरसात, रखो तुम सर को कांधे।।२।।

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22 APR AT 23:06

हर पल उसकी याद जहन में रहती है,
मानो इक बहार तबाह चमन में रहती है।

कैसे रोकूॅं खुद को उसके दीदार से,
कितनी गुलपोशी उसके बदन में रहती है।

कोई नहीं जान सकेगा इश्क का असर,
धड़कन तो हिज्र की तपन में रहती है।

यूॅं मिल भी लूॅं सारे जहाॅं के सामने, पर
वस्ल की बात गुपचुप मिलन में रहती है।

वक्त भर ही देता है हर इक जख्म को,
और जिंदगी दिल में उठी चुभन में रहती है।

आसां नहीं है मुस्कान में दर्द खोजना,
कितनी बात छिपे हुए सुख़न में रहती है।

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20 APR AT 23:51

एक तरफ तो तुम कहते हो प्यार बहुत है,
फिर क्यों मेरी बातों से इनकार बहुत है।

सपनों को पूरा करने में घिसते कांधे,
इन शानों पर घर का यारो भार बहुत है।

उसे देखने दिल में फिर से तड़प उठी है,
मानो उससे मिलने के आसार बहुत हैं।

नहीं चाहिए मुझको कोई दरिया और समंदर,
डूबूं तो उसके दोनों अब्सार बहुत हैं।

तुम तो कम से कम बोलो तो सच बोलो,
झूठ बोलने हर दिन का अखबार बहुत है।

जो मिलता है अपनी राह चला जाता है,
'भानू' तुझसे दुनिया भर को ख्वार बहुत है।

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19 APR AT 21:38

बहुत हुई मनमानी दिल।
कर ना आनाकानी दिल।

एक नज़र जो उसने देखा,
शर्म से पानी-पानी दिल।

दिल में उसके आ जाने से,
बन बैठा लाफानी दिल।

देख के उसकी चंचल सूरत
क्यों इतनी हैरानी दिल।

इश्क करेगा और जिएगा,
कैसी ये नादानी दिल।

जब से उसने मुँह मोड़ा है,
छाई है वीरानी दिल।

रब से केवल एक दुआ है,
हो जाए इंसानी दिल।

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18 APR AT 22:12

बड़ी खूबसूरत शक्ल है क्या कीजै।
हूबहू हूर ही दर-अस्ल है क्या कीजै।

पता नहीं चल रहा कि चोर कौन है,
हर आदमी हम-शक्ल है क्या कीजै।

नही मालूम मुझे सही औ' गलत का,
सब एक दूजे की नक्ल है क्या कीजै।

दुश्मन ने बाद मुद्दत सर उठाया है,
दोस्त इसमें तेरा दख्ल है क्या कीजै।

चुनाव आ गया है वही बटन दबेगा,
सब अंधों की नस्ल है क्या कीजै।

देख कर भी रोक न सका बुराई को
इंसानियत का कत्ल है क्या कीजै।

ऐ रात जरा ठहर जा इस पल में,
आज इश्क का वस्ल है क्या कीजै।

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