नाराज़गी भी उनसे क्या ही करें जिनसे उमीदें हमने लगा रखी थी, ख़ता भी क्या करें उनसे जब गलतफेहमियाँ हमने हि पाल रखी थी, और माफ़ करना अये दोस्त जो उम्मीदें हमने लगा रखी थी।।।
नाराज़गी भी उनसे क्या ही करें जिनसे उमीदें हमने लगा रखी थी, क्या ही ख़ता हुई उनसे जब गलतफेहमियाँ हमने पाल रखी थी, और माफ़ करना अये दोस्त जो उम्मीदें हमने लगा रखी थी।।।
हम तो उनकी फ़िक्र जीते रहे अपने ग़मों के घूट पीते रहे उनसे रूबरू होने की आस लगाये बैठे थे मगर हमें क्या मालूम था कि वो हमें ऐसा नकारेंगे कि ख़ुदा भी हमारी तन्हाई को दूर करने की दुआ माँगेंगे।।।
जब भी मन किया, गुफ़्तगू कर लिया करते हैं इन बेजान से पड़े तकियों से, हम अपने अश्कों को बाँट लिया करते हैं शोर तो बहुत है ज़िंदगी में, फिर भी रात शांति से काट लिया करते हैं क्योंकि हम उसमें के है जनाब, जो आसुओं को भी पानी समझ पी लिया करते हैं।।।
ज़िंदगी के खेल में एक दाँव हमने भी खेला था, कोई कसर न छोड़ी थी हमने जीत पाने की मगर शायद किस्मत ने ही हमसे मुख् मोड़ था, तो क्या हुआ हम हारे थे जीत का दामन हमने अभी भी न छोड़ा था।।।