यादों की किताब का कौन सा पन्ना खोलूॅं,
जहाॅं जाऊॅं वहाॅं बस खुशी के पलों को ही पाऊॅं...!
बचपन के वह दिन थे सुहाने,
जब बिना कोई परेशानी करते रहते थे मनमानी
घूमते थे बेफिक्र होकर,
सोते थे मीठी नींद माॅं की गोद में...!
दोस्तों के साथ खेलकूद में,वक्त बीतता था बड़े मजे से ।
पढ़ाई भी होती थी वक्त पर,
और बातें भी हो जाती थी धीरे से....!
जैसे जैसे समय आगे बढ़ा,
जिम्मेदारियों ने हॅंसना भुलाया ।
पर फिर भी यादें अब भी हैं जहन में,
जो लाई है खुशियाॅं जीवन में...!
कॉलेज का जीवन हो या पिकनिक पार्टी,
गानों की महफिल हो या जन्मदिन की पार्टी...
ठहाको की गूॅंज से भरा वो समा,
आज भी पुकारता है मुझे वह मौसम खुशनुमा....!
सुहाने सपनों की वह घड़ी करीब थी आई,
जब मुॅंह पर लाली और ऑंखों में शर्म थी छाई...!
साजन संग नई खुशियाॅं ढूॅंढने जो मैं चली थी,
साथ पुराना छोड़ नई दुनिया बसाने मै चली थी...!
जीवन की किताब के सारे पन्ने बहुत यादगार हैं ।
आज भी जो चेहरे पर लाते मधुर मुस्कान है ।
बीते वक्त में लौट पाऊॅं तो उन पलों को फिर से जी लूॅं,
खोई हुई खुशियाॅं मेरी हमेशा के लिए कैद कर लूॅं....!!
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