जिससे बात-चित करके मुकम्मल मेरी नींद होती थी। जाने कहा वो मेरा मन मीत गया वो एक चेहरा आँखो से ओझल ना हुआ पल भर के लिए भी कहने को तो यारों पूरा साल बीत गया।
एक छोटी सी जिन्दगीं है, उसमें भी हर सक्स उदास रहता हैं। काश... कोई ऐसा भी होता, जो कहता... जीना ही है, तो खुशी और प्यार से अपनों के साथ जिया जाए। वैसे भी, आज-कल का मंजर भी तो ऐसा ही है कि कब कौन किस से बिछड जाएँ किसी को पता नहीं है ।