फूल खिले,
कलियां मुसकाई.....
भंवरे लगे गुनगुनाने......
चाल में उनकी बहक आई.....
देख फूल को बोला एक भंवर.....
आज इस ओर है फेरा अपना.......
नई नवेली, साजो सज्जा.....
कयाकल्पित अंकुरण, रंग बंझन से सुशोभित नभ और जन.....
अलसाई देह को छूने,
भंवरे की गति ने परचम पकड़ा.....
इठलाती, मुस्कुराती, नाचती.......
गुलाब की कोमल नाज़ुक पंखुड़ियां......
भंवर रस से अंजान......
हवा के वेग संग झूमती, गाती.......
दूर खड़ा भंवरा, इकटक
रखा उस पर पहरा.....
देख रहा देह उसकी, सोचा
कितना अनमोल होगा रस इसका.....
क्या पता कल फिर हो या ना इस ओर फेरा
आज न छोड़ूंगा, ये मौका अपना
फूल= लड़की
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