Bandana Tripathi   (Bandana)
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Joined 12 July 2017


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13 DEC 2021 AT 10:43

फूल खिले,
कलियां मुसकाई.....
भंवरे लगे गुनगुनाने......
चाल में उनकी बहक आई.....
देख फूल को बोला एक भंवर.....
आज इस ओर है फेरा अपना.......

नई नवेली, साजो सज्जा.....
कयाकल्पित अंकुरण, रंग बंझन से सुशोभित नभ और जन.....
अलसाई देह को छूने,
भंवरे की गति ने परचम पकड़ा.....

इठलाती, मुस्कुराती, नाचती.......
गुलाब की कोमल नाज़ुक पंखुड़ियां......
भंवर रस से अंजान......
हवा के वेग संग झूमती, गाती.......

दूर खड़ा भंवरा, इकटक
रखा उस पर पहरा.....
देख रहा देह उसकी, सोचा
कितना अनमोल होगा रस इसका.....
क्या पता कल फिर हो या ना इस ओर फेरा
आज न छोड़ूंगा, ये मौका अपना

फूल= लड़की



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16 OCT 2021 AT 16:35

When you're in pain, appearance of everyone appears to be in vain.....
Oneself has to trigger out in its own way....
How to get rid of that volcanic game which make you frail again and again
Albeit we are strong enough to take harsh and toughest decision
Strong enough to bear separation of our loved ones
Just one thing which make you cry and wail in dark....
Silently, from the eyes of everyone.....
Is that repetitive syndrome, which attacks you most when you are at happiest side....
All alone...... to caress yourself and pat for feeling high....
In hope of mercy of some miracle.....may be a power nap
That will wipe away our all fear and tears....

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26 SEP 2021 AT 23:14

उनका यूं मुस्कुराना, जैसे काफ़िर को खुदा से मिलाना
उफ़ ये नजाकत, शर्मो हया से फिर नजरें चुराना

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26 SEP 2021 AT 22:51

मगरूर सी रिवायतो में, रुहानियत इक झूठी आस.....
चुप रहूं या बोलूं हंसकर, कैसे दूर करू ये मायाजाल

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22 JUN 2021 AT 18:19

बात बिगड़ जाने पर, गैर तो क्या आजकल अपने भी चुस्की लेते हैं.....
बात करने के अंदाज को घुमा, राज जानने की कोशिश करते है....

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18 JUN 2021 AT 20:46

न जाने किस मोड़ पर आ खड़े है,
खुद को सही साबित करने की तर्ज़ में नाता सबसे टूट रहे
जो कभी साथ चलते थे हमारे, अब नफ़रत भरी निगाहों से देख रहे
ऐ जिंदगी, कहा धूमिल हों चुकी मेरी जिंदादिली
अस्तित्व के सवाल में बैचेन यूं सांस मेरी हो रही

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7 MAY 2021 AT 18:55

शून्य से चौकस, बिंदु से विराम.....
तहे दिल से आभार, स्वीकार है हर इक सर्वनाम॥

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6 MAY 2021 AT 7:14

रिवायतों की चासनी में भिगो कर, आसान है किसी को अना - परस्त(egoistic) कहना…...
"रोज की आदत है" कह रवैये को हमारे सरे-आम निलाम करना
मासूमियत का चोला पहन, फिर अकसर ये गुनगुनाना
ये तो मैं हूं ही नहीं, शायद तुम्हें रास्ते उस ओर था जाना

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5 MAY 2021 AT 20:59

अपनी गुस्ताखियो को हमारी अकड़ और आदत के पल्ले बांध दिया,
वाह री दुनिया, तूने हमारी नज़रों में हमको ही मुजरिम ठहरा दिया.....

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3 APR 2021 AT 17:10

मेरे हर इक किस्से में, लोगों के हिस्से है.......
इतने मशहूर हम भी नहीं, जितने हमारे किस्से है....

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