Balram Bathra   (βαℓяαм..)
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Joined 18 June 2019


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Joined 18 June 2019
31 JAN AT 21:25

“प्रेम और बुद्धत्व”

बुद्धत्व की प्रथम सीढ़ी प्रेम है.,
और प्रेम की अंतिम सीढ़ी बुद्धत्व..

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22 OCT 2023 AT 21:45

सैकड़ों ख्वाहिशों को, दिल में दबा रक्खा है.,
मगर मुस्कुराहट तले, हर गम छुपा रक्खा है..

एक चेहरे को पढ़ने में, लग जाती है सदियां.,
और लोगों ने , चेहरे पर चेहरा चढ़ा रक्खा है..

जहन पे जोर देने से, याद आता है अब नाम.,
एक शख़्स को मैंने, इस तरह भुला रक्खा है..

बस इतवार को हो पाती है, खुद से मुलाकात.,
अपने लिए मैंने, इतना-सा वक्त बचा रक्खा है..

किसी रोज, इन्हीं के पैरों में तुम्हारा सर होगा.,
यही जिन्हें तुमने , अपने सर पे बिठा रक्खा है..

कल तलक ये, एक ही थाली में खाया करते थे.,
जिनको तूने, मज़हब के नाम पर, लड़ा रक्खा है..

किसी रोज ये खबर मिलेगी, हम फना हो गए.,
फिल्हाल जिस्म ने, रूह का वजन उठा रक्खा है..

तुम्हें बताया तो था, समझते क्यों नहीं आखिर?
हरेक बात में उसका ज़िक्र , क्या लगा रक्खा है?

बरगद बड़े सलीके से खड़े रहे, अंधियों के बीच.,
और चन्द गमलों ने, आसमां सर पे उठा रक्खा है..

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19 OCT 2023 AT 7:00

बताओ अपने वजूद को, कितने हिस्सों में बिखेरूं आखिर ?
किसी को गूंगा, किसी को बहरा, किसी को अंधा पसंद हूं मैं..

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15 OCT 2023 AT 20:42

कोई है जो मुझे, मुझसे जुदा कर सके.,
बदन से रूह का वजन, उठाया नहीं जा रहा..

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7 SEP 2023 AT 11:04

यूं नहीं है कि, वो शख़्स काबिल नहीं लगा.,
मसअला ये था, उसके साथ दिल नहीं लगा..

उससे बिछड़ जाने का, अफसोस नहीं हुआ.,
वो रौनके सफ़र था , कभी मंजिल नहीं लगा..

ना जाने कौनसा गम , उसे खाए जा रहा था.,
कह रहा था खुश है, पर खुशदिल नहीं लगा..

उसकी रगों में लहू नहीं , वादा-फरामोशी है.,
वो शख़्स अपने वादे पे, मुस्तकिल नहीं लगा..

दौलत हर ऐब, छुपा लिया करती है साहिब.,
वो जाहिल भी , किसी को जाहिल नहीं लगा..

गैरों से अगर, गिला करता भी तो क्या करता?
जब मेरा अपना, मेरे गम में शामिल नहीं लगा..

जिस दिन से , तुमने मेरा हाथ थामा है, ‘बिट्टू’.,
उसके बाद, कोई भी रास्ता मुश्किल नहीं लगा..

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6 JUL 2023 AT 20:39

मुझमें, मैं अब मुकम्मल नहीं बचा साहिब.,
जिम्मेदारियां खा गई, जगह–जगह से मुझे..

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14 JUN 2023 AT 20:44

ज़ख्मी पांवों से किया है, सफ़र का आगाज़.,
मंज़िल भले ही देर से मिले, पर मिलेगी जरूर..

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13 JUN 2023 AT 20:41

मौत के डर से, अपनी जुबां नहीं खोलते लोग.,
बस जीने के लिये जिंदा हो, मर क्यों नहीं जाते..

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9 JUN 2023 AT 18:23

मैंने
अपनी किसी भी
कविता के अन्त में
‘पूर्ण विराम’ नहीं लगाया.,

और
इस तरह मैंने
‘कुछ संभावनाएं’
छोड़ी है तुम्हारे लिए..

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9 JUN 2023 AT 8:24

इस दुनिया में सर्वत्र दुःख है,
दुःख के सिवा और कुछ भी नहीं.,

‘संभावनाएं’
तुम्हें तलाशनी है.,
हँसने की,
मुस्कुराने की,
खुश रहने की..

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