घर छोटा सा था वो मगर
वहा 'तुम' और 'मैं' नहीं
'हम' रहा करते थे
हाँ वो दिन
कुछ अलग ही हुआ करते थे....
कमरे दिखते थे खाली खाली
पर दिलो में प्यार बेशुमार भरा था
घंटे कुल चौबिस दिन सात तब भी थे
पर एक दूसरे के लिए
वक्त मिल ही जाया करता था...
लड़ते तब भी थे हम
गिले शिकवे भी खूब थे
पर रूठने मनाने का
वो सिलसिला ही कुछ अलग था...
दूर जाने पर
एक एक पल कटना मुश्किल था तब
पास होके भी अब
दूरिया नहीं होती है कम....
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